अतुल्य भारत चेतना
प्रज्ञा
दक्षिण सुलावेसी, इंडोनेशिया के पहाड़ी इलाकों में बसा तोराजा क्षेत्र अपनी अनूठी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसे “मुर्दों का शहर” (Village of the Dead) कहा जाता है, क्योंकि यहाँ की तोराजा जनजाति मृत्यु को जीवन के एक नए पड़ाव के रूप में देखती है और मृतकों के साथ जीवितों जैसा व्यवहार करती है। उनकी मृत्यु से जुड़ी रस्में, जैसे मानेने और भव्य अंतिम संस्कार, विश्व भर में चर्चा का विषय हैं। यहाँ की तोराजा जनजाति, जो लगभग 10 लाख की आबादी वाली है, अपनी प्राचीन परंपराओं और अलुक तो डोलो (पूर्वजों का मार्ग) नामक स्थानीय धर्म के लिए जानी जाती है। यह धर्म एनिमिस्ट मान्यताओं और 1920 के दशक में डच मिशनरियों द्वारा लाए गए प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म का मिश्रण है। तोराजा संस्कृति में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं, बल्कि आत्मा की एक नई यात्रा का प्रारंभ माना जाता है।
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मानेने रस्म:
तोराजा की सबसे चर्चित परंपराओं में से एक है मानेने रस्म, जिसमें हर कुछ वर्षों में परिवारजन अपने मृत परिजनों की कब्रों को खोलते हैं, उनकी ममीकृत शरीर को साफ करते हैं, एक प्रकार का केमिकल लगाते हैं, ताकि ये शरीर खराब ना हो नए कपड़े पहनाते हैं, और उनके साथ समय बिताते हैं। इस दौरान मृतकों को सिगरेट जलाने, उनके साथ तस्वीरें खींचने, और उन्हें घर लाने जैसे कार्य किए जाते हैं। तोराजा लोग मानते हैं कि यह रस्म मृतकों की आत्माओं को सम्मान देने तथा धनवान बनने का और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है।
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भव्य अंतिम संस्कार:
तोराजा में अंतिम संस्कार एक भव्य सामाजिक आयोजन है, जो कई दिनों तक चल सकता है। इन समारोहों में सैकड़ों मेहमान शामिल होते हैं, और दर्जनों भैंसों और सुअरों की बलि दी जाती है। तोराजा लोग मानते हैं कि भैंस की आत्मा मृतक को अगले जीवन में ले जाती है। ये अंतिम संस्कार इतने खर्चीले होते हैं कि परिवार अक्सर महीनों या वर्षों तक पैसे जुटाते हैं, और तब तक मृतक की देह को घर में रखते हैं, जहाँ उसे जीवित की तरह देखभाल की जाती है।
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इन समारोहों में शामिल होने के लिए विदेशी पर्यटकों को भी आमंत्रित किया जाता है, जो तोराजा की आतिथ्य परंपरा को दर्शाता है। पर्यटक इस अनोखे अनुभव के लिए रंतेपाओ और आसपास के गाँवों में आते हैं, जिससे स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
चट्टानों में दफन और ताऊ-ताऊ मूर्तियाँ
तोराजा की एक और अनूठी परंपरा है मृतकों को चट्टानों में दफन करना। यहाँ की करस्ट पहाड़ियों में गुफाएँ और चट्टानी कब्रें बनाई जाती हैं, जहाँ मृतकों को दफनाया जाता है। इन कब्रों के बाहर ताऊ-ताऊ नामक लकड़ी की मूर्तियाँ रखी जाती हैं, जो मृतक का प्रतीक होती हैं। ये मूर्तियाँ न केवल मृतक की स्मृति को जीवित रखती हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं।

हाल ही में, जनवरी 2025 में तोराजा के सापाक बायोबायो में सैंक्टा फेमिलिया चर्च का उद्घाटन हुआ, जिसका वेदी एक चट्टानी करस्ट पहाड़ी में एकीकृत है। यह चर्च तोराजा की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
चुनौतियाँ:
तोराजा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से भूस्खलन और भूकंप, से भी प्रभावित होता है। अप्रैल 2024 में ताना तोराजा में भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन में 20 लोगों की मृत्यु हो गई थी। हाल ही में, मई 2025 में सुलावेसी में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया, जिसके झटके पड़ोसी क्षेत्रों में भी महसूस किए गए। इन आपदाओं के बावजूद, तोराजा की जनजाति अपनी परंपराओं को जीवित रखने में दृढ़ है।
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आधुनिक संदर्भ में तोराजा की प्रासंगिकता
आज के वैश्वीकरण के युग में, तोराजा की परंपराएँ न केवल स्थानीय समुदाय के लिए, बल्कि विश्व भर के मानवविज्ञानियों, पर्यटकों, और संस्कृति प्रेमियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। मानेने और अंतिम संस्कार जैसी परंपराएँ हमें मृत्यु के प्रति एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, जहाँ मृतक परिवार का हिस्सा बने रहते हैं। ये रस्में सामाजिक एकता, पारिवारिक मूल्यों, और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देती हैं।
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तोराजा, दक्षिण सुलावेसी, अपनी अनूठी मृत्यु परंपराओं के कारण “मुर्दों का शहर” कहलाता है। मानेने रस्म, भव्य अंतिम संस्कार, और चट्टानी कब्रें यहाँ की संस्कृति को विश्व में विशिष्ट बनाती हैं। यह क्षेत्र न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और आतिथ्य के लिए भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
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प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद, तोराजा की जनजाति अपनी परंपराओं को जीवित रखने में सक्षम रही है, जो हमें मृत्यु और जीवन के बीच के अनोखे रिश्ते को समझने का अवसर देती है।