Breaking
Thu. Apr 24th, 2025
Spread the love

शर्म आनी चाहिए इस देश को अगर इस देश में होली का त्यौहार और जुमे की नमाज़ एक साथ नहीं हो सकती। त्यौहार न हुआ, border पर जंग होने जैसी स्थिति है। ऐसा तो कभी देखा-सुना ही नहीं था। संभल में प्रशासन कहता है नमाज़ रोक दो, दरभंगा में प्रशासन कहता है होली रोक दो। क्या है ये सब? डूब कर मर क्यों नहीं जाते ये सब सोचने से पहले? यही सब देखने के लिए आज़ाद, खुदीराम, भगत सिंह, सुभाष, अशफाकुल्ला ने क़ुर्बानी दी थी? हम सब पागल हो गए हैं जो आँखों के सामने ये सब होता हुआ देख रहे हैं। छी!!! घिन आती है ऐसी सोच पर भी। ऐसा करो, हर चीज़ का time बाँट दो। जब हिन्दू खाना खाये तो मुसलमान न खाए, जब मुसलमान office जाए तो हिन्दू न जाए। बाँट दिया रे… बाँट दिया भेड़ियों तुम सब सियासत वालों ने मेरे देश को। खा गए सारा प्रेम-सौहार्द!! नरक में जाओगे भेड़ियों… सड़ोगे दोज़ख़ में!! छी!! और कोई बोल नहीं रहा इसके बाद भी। सब लगे हुए हैं अपने अपने काम में। सब लोग सब कुछ देख रहे हैं लेकिन किसी का मुँह नहीं खुलेगा।

तमाशा देखने की आदत है इस देश को। आग लगे ऐसी तरक्की को कि जिससे इंसान से इंसान का रिश्ता सवाल में आ जाए। आग लगे ऐसे बढ़ते literacy rate को जो दुश्मनी का जरिया बन जाए!! रहो चुप… होने दो जो हो रहा है… ख़त्म कर दो भारत नाम का concept… पहले तो एक देश अलग हुआ… अब मोहल्ले अलग हो रहे हैं… ये सबसे भयावह समय है सामाजिक दृष्टि से। लेकिन आपको क्या है? मुझे पता है अभी आप में से कुछ को बड़ा मज़ा आ रहा होगा। लेकिन आप ये नहीं समझ रहे हैं कि जो समाज आज बारूद के ढेर पर बैठा है, उसी समाज में आपका भी घर है और वो बारूद दिन ब दिन फटने की ओर अग्रसर होता जा रहा है। पछताएंगे, एक दिन हम सब पछताएंगे… उस दिन हिन्दू को रोने के लिए कोई हिन्दू कंधा नहीं मिलेगा और मुसलमान को रोने के लिए कोई मुसलमान कंधा नहीं मिलेगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। हम सब अपना बहुत कुछ खो चुके होंगे।

प्रबुद्ध सौरभ
(कवि, गीतकार एवं फिल्म पटकथा लेखक)

शर्म आनी चाहिए इस देश को अगर इस देश में होली का त्यौहार और जुमे की नमाज़ एक साथ नहीं हो सकती। त्यौहार न हुआ, border पर जंग होने जैसी स्थिति है। ऐसा तो कभी देखा-सुना ही नहीं था। संभल में प्रशासन कहता है नमाज़ रोक दो, दरभंगा में प्रशासन कहता है होली रोक दो। क्या है ये सब? डूब कर मर क्यों नहीं जाते ये सब सोचने से पहले? यही सब देखने के लिए आज़ाद, खुदीराम, भगत सिंह, सुभाष, अशफाकुल्ला ने क़ुर्बानी दी थी? हम सब पागल हो गए हैं जो आँखों के सामने ये सब होता हुआ देख रहे हैं। छी!!! घिन आती है ऐसी सोच पर भी। ऐसा करो, हर चीज़ का time बाँट दो। जब हिन्दू खाना खाये तो मुसलमान न खाए, जब मुसलमान office जाए तो हिन्दू न जाए। बाँट दिया रे… बाँट दिया भेड़ियों तुम सब सियासत वालों ने मेरे देश को। खा गए सारा प्रेम-सौहार्द!! नरक में जाओगे भेड़ियों… सड़ोगे दोज़ख़ में!! छी!! और कोई बोल नहीं रहा इसके बाद भी। सब लगे हुए हैं अपने अपने काम में। सब लोग सब कुछ देख रहे हैं लेकिन किसी का मुँह नहीं खुलेगा। तमाशा देखने की आदत है इस देश को। आग लगे ऐसी तरक्की को कि जिससे इंसान से इंसान का रिश्ता सवाल में आ जाए। आग लगे ऐसे बढ़ते literacy rate को जो दुश्मनी का जरिया बन जाए!! रहो चुप… होने दो जो हो रहा है… ख़त्म कर दो भारत नाम का concept… पहले तो एक देश अलग हुआ… अब मोहल्ले अलग हो रहे हैं… ये सबसे भयावह समय है सामाजिक दृष्टि से। लेकिन आपको क्या है? मुझे पता है अभी आप में से कुछ को बड़ा मज़ा आ रहा होगा। लेकिन आप ये नहीं समझ रहे हैं कि जो समाज आज बारूद के ढेर पर बैठा है, उसी समाज में आपका भी घर है और वो बारूद दिन ब दिन फटने की ओर अग्रसर होता जा रहा है। पछताएंगे, एक दिन हम सब पछताएंगे… उस दिन हिन्दू को रोने के लिए कोई हिन्दू कंधा नहीं मिलेगा और मुसलमान को रोने के लिए कोई मुसलमान कंधा नहीं मिलेगा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। हम सब अपना बहुत कुछ खो चुके होंगे।

Responsive Ad Your Ad Alt Text
Responsive Ad Your Ad Alt Text

Related Post

Responsive Ad Your Ad Alt Text