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भारत और कनाडा के सम्बन्धों में बढ़ती दूरियाँ

By News Desk Sep 25, 2023
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अतुल्य भारत चेतना
विशेष रिपोर्ट
अमिता तिवारी ‘प्रेरणा’
वर्तमान समय में यह खबर सुर्खियों में बनी हुई है, कि ‘भारत और कनाडा के बीच तकरार’ या ‘दोनो देशों में बढा तनाव’ या फिर ‘भारत और कनाडा के सम्बंधों में दरार’, लेकिन अहम बात यह है कि यह दरार आई क्यों? इस विषय में भी तरह-तरह की सही गलत बातें नए-नए रूपों में सामने आ रही हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में तथ्यों को खंगालकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है अतुल्य भारत चेतना ने। जैसा कि सभी को पता है कि हाल में ही एक खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कनाडा में हुई। खालिस्तानी नेता और कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की जून में उपनगरीय वैंकूवर में एक सिख गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, और कनाडा सरकार ने इसका आरोप भारत पर लगाया है।

यही नहीं बल्कि कनाडा ने अपना प्रभाव दिखाते हुए एक सीनियर भारतीय राजनयिक को अपने देश से निष्कासित कर दिया। प्रतिउत्तर में भारत ने ऐसी किसी भी गतिविधि में अपनी भूमिका को नकारते हुए जवाबी कार्रवाई में एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। ऐसे समय में दुनियाभर की नजरें दोनों देशों की आगामी प्रतिक्रिया पर टिकी हुई हैं। दोनों देशों में आई दरार का कारण खालिस्तानी नेता की मौत है…। तो सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि ‘खालिस्तान’ क्या है?
तो विकीपीडिया की मदद से पता चला कि
ख़ालिस्तान मतलब (“ख़ालसे की सरज़मीन”) भारत के पंजाब राज्य के सिख अलगाववादियों द्वारा प्रस्तावित राष्ट्र को दिया गया नाम है। ख़ालिस्तान के क्षेत्रीय दावे में मौजूदा भारतीय राज्य पंजाब, पाकिस्तान राज्य पंजाब और राजस्थान के भी कुछ क्षेत्र शामिल है। 1984 में ख़ालिस्तान आंदोलन अपने चरम पर था।
1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान खड़े हुए थे, लेकिन वह चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बाद जगजीत सिंह चौहान ब्रिटेन चले गए, और वहां खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की। इसके बाद इस आंदोलन में जरनैल सिंह भिंडरावाले का आगमन हुआ। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया। उधर भारत में 90 का दशक ख़त्म होते होते खालिस्तान आंदोलन भी ठंडा पड़ने लगा।

खैर यह तो हो गई ख़ालिस्तान से संबंधित कुछ संक्षिप्त बातें। अब यह समझना बहुत जरूरी है कि ख़ालिस्तानी कनाडा पहुंचे कैसे? 60 के दशक के शुरू में जब कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार आयी और उसको सस्ते वर्क फाॅर्स की जरुरत पड़ी, तब पंजाबियों ने कनाडा जाना शुरू किया। वर्तमान समय में वहाँ रहने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 18 लाख के आसपास हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या सिखों की है जो 7 लाख, 80 हज़ार के आसपास हैं। सबसे ज्यादा सिख ओंटेरियो के ब्रैम्पटन शहर में रहते हैं। पंजाब में प्रत्येक युवा बचपन से कनाडा के सपने देखने शुरू कर देता है। इसकी एक वजह तो अब्राॅड का चार्म है, और दूसरी वजह यह है कि वहाँ उनके कई रिश्तेदार या दोस्त सेट हो चुके हैं। अब चौंकाने वाली बात यह है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर उस देश के अधिकारियों द्वारा वांछित एक व्यक्ति की हत्या में शामिल होने का आरोप क्यों लगाया? तो इसका संभावित जवाब यह हो सकता है कि कनाडा की सरकार में सिखों का अहम रोल है। कनाडा की संसद में 338 सीट हैं। साल 2019 में हुए चुनाव में यहां 18 सिख सांसद चुने गए थे। एक समय था जब जस्टिन ट्रूडो सरकार की कैबिनेट में 4 सिख शामिल थे। कनाडा में सिख राजनीति का एक बड़ा प्रारूप वहाँ बडी संख्या में गुरुद्वारों का होना है। कनाडा में 200 के आसपास गुरुद्वारे हैं, जिनकी प्रबंधक कमेटी का चुनाव होता है, और जिनमें से क़ई पर ख़ालिस्तानी चरम पंथियों का पूरा दबदबा है। यद्यपि यह एक ब्लॉक के रूप में वोट कर सकते हैं, इसलिए गुरुद्वारों की पॉलिटिक्स का असर राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई देता है। साल 2015 में कनाडा में ट्रुडो की सरकार आने के बाद खालिस्तानियों के हौसले आसमान को छूने लगे। उनकी पार्टी को खालिस्तानी समर्थक समूह ने समर्थन दिया, 2019 में जब लिबरल पार्टी 19 सीटों से बहुमत में पीछे थी, तब खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की पार्टी ने उन्हें समर्थन दिया और इनका ट्रूडो सरकार पर दबाव भी बना हुआ है। जस्टिन ट्रूडो को सालों से वोट का डर सता रहा है, इसीलिए वह कभी भारत आकर एक घोषित ख़ालिस्तानी आतंकी को डिनर पर न्यौता देते हैं, तो कभी ख़ालिस्तानी पार्टियों से गठबंधन करते हैं। मार्च 2022 के बाद से जस्टिन ट्रूडो की सरकार, New Democratic Party नाम की एक पार्टी के समर्थन से चल रही है। जिसके लीडर जगमीत सिंह हैं। जगमीत की पार्टी खालिस्तान अलगाववाद को खुला समर्थन देती है। इन सब मुद्दों को समझने के बाद का मुद्दा है कि ताजा विवाद ने कैसे तूल पकडा? तो बात उठी जी-20 से….। 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में हुए G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G-20 समिट में भाग लेने पहुंचे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सामने उनके देश में बढ़ रही खालिस्तानी गतिविधियों का मामला उठाया। मोदी ने कनाडाई सरकार से अलगाववादी गतिविधियों को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात कही। इस पर कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत सरकार कनाडा के घरेलू मामलों और राजनीति में दखल न दे।

यही नहीं, ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को अपने देश का नागरिक बताते हुए भारत सरकार के सामने उसकी हत्या का मामला भी उठाया। इसके बाद तो ट्रूडो ने हद ही पार कर दी जब वह G-20 शिखर सम्मेलन के बाद कनाडा पहुंचे तब वहां की संसद से एक बयान जारी कर दिया कि हरदीप सिंह निज्जर कनाडा का नागरिक था, और उसकी हत्या भारत सरकार ने करवाई है। इसके साथ ही कनाडाई सरकार ने एक भारतीय डिप्लोमैट को भी अपने देश से निकाल दिया। भारत सरकार ने कनाडा के इस कदम का कड़ा संज्ञान लेते हुए ट्रूडो के सारे आरोपों को गलत बताते हुए नई दिल्ली में कनाडा के एक डिप्लोमैट को भी भारत छोड़ने के लिए कह दिया। अब चिंता का विषय यह है कि यह विवाद किस सीमा तक पहुँच सकता है? ट्रूडो के ऐसे उकसाने वाले व्यवहार तो परिस्थित को बद से बदतर की तरफ ले जा रहे हैं। इस बिगड़ते रिश्ते का असर कनाडा और भारत के बीच होने वाले व्यापार और कनाडा में रहने वाले भारतीय प्रवासियों पर सबसे ज्यादा पड़ने वाला है। एक भारतीय नागरिक होने के नाते जस्टिन ट्रूडो को यही सलाह दी जाएगी कि ट्रूडो को इन बिगड़े बोलो की कीमत चुकानी पड़ सकती है। ट्रूडो को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी बेबुनियाद बयानबाजी से बचना चाहिए। कहीं यह लड़ाई उनको मंहगी न पड़ जाए, क्योंकि कनाडा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को एक प्रमुख राजस्व स्रोत और श्रम का एक सस्ता स्रोत माना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष $30 बिलियन से अधिक का योगदान करते हैं, जो कई क्षेत्रों में उनके संयुक्त व्यापार से अधिक है। इसमें से 40 प्रतिशत भारतीय अंतरराष्ट्रीय छात्रों से आता है। सबसे ज़्यादा भारतीय प्रवासी कनाडा के टोरंटो, ओटावा, वॉटरलू और ब्रैम्टन शहरों में बसे हैं। इनमें से टोरंटो भारतीयों के लिए गढ़ की तरह है। इस शहर को कनाडा के विकास के हिसाब से शीर्ष माना जाता है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में कनाडा में पढ़ रहे विदेशी छात्रों में 40 फ़ीसदी भारतीय हैं। कनाडा को इसका सबसे ज्यादा असर होने वाला है। कनाडा की अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से भी भारतीय अहमियत रखते हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि कनाडा में टीसीएस, इन्फ़ोसिस, विप्रो जैसी 30 भारतीय कंपनियों ने अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है, जिससे हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलता है। भारतीय कंपनियां कनाडा में आईटी, सॉफ्टवेयर, नेचुरल रिसोर्सेज और बैंकिंग सेक्टर में सक्रिय हैं। यहां लगभग 20 लाख भारतीयों का इकनॉमी के हर सेक्टर में दबदबा बना हुआ है। भारत की ओर से कनाडा को निर्यात किए जाने वाले प्रमुख आइटमों में आभूषण, बेशकीमती पत्थर, फार्मा प्रोडक्ट, रेडिमेड गारमेंट, ऑर्गेनिक केमिकल्स, लाइट इंजीनियरिंग सामान, आयरन एंड स्टील प्रोडक्टस शामिल हैं। भारत के साथ कनाडा का बड़ा कारोबार है। भारत के साथ कनाडा के कारोबार पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अर्थव्यवस्था के मामले में कनाडा अभी भारत से बहुत पीछे है। कनाडा अपने बयानबाजी से अपनी इकॉनमी को मटियामेट करने पर तुल गया है। इधर भारत को पता है कि उसका पलड़ा भारी है, अगर तनाव बढ़ा तो कनाडा की अर्थव्यवस्था चरमराएगी, और आयात-निर्यात प्रभावित होगा। भारत कनाडा से दालें, न्यूज़प्रिंट, वुड पल्प, एस्बेस्टस, पोटाश, आयरन स्क्रैप, खनिज, इंडस्ट्रियल केमिकल मंगाता है। भारत कनाडा से बड़ी मात्रा में मसूर दाल खरीदता है। अगर विवाद बढ़ा तो दालें महंगी हो जाएंगी जिसको भारत बैलेंस कर सकता है। अब सोचना तो ट्रूडो को है कि वह अपनी बचकाना हरकतों से आपसी सम्बन्धों को मिट्टी में मिला देंगे या फिर अपनी सूझबूझ से भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढाएंगे…..।

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