अतुल्य भारत चेतना
हाकम सिंह रघुवंशी
विदिशा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय चर्च वाली गली वरेठ रोड स्थित सेवा केंद्र द्वारा दादा लेखराज उर्फ़ प्रजापिता ब्रह्मा बाबा जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साकार संस्थापक, आदि पिता प्रजापिता ब्रह्मा बाबा का 148वीं जन्म-जयंती आध्यात्मिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाई गई। ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी ने अपने विचार रखते ही कहा कि दुनिया में महापुरुषों, धार्मिक नेताओं, संत या धर्म संस्थापकों का जन्म जयंती को बड़े रूप में मानते हैं, पर यह एैसे महापुरुष की जन्म जयंती है जो भागीरथ बन करके … ज्ञान सागर सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा का (रथ) माध्यम बने। दादा ने ईश्वर के महावक्यों को मां की तरह अपने अनुभव के आधार पर सहज बनाकर सरल भाषा में हम बच्चों के आगे रख मां का वात्सल्य पिता का प्यार आप में हम सभी ने पाया विश्व इतिहास के इस पुण्य दिवस पर उन भागीरथ जिन्हें हम सब ब्रह्मा बाबा कहते हैं। जिनके 60 वर्ष पूरे होने पर इनके तन में शिव परमात्मा ने प्रवेश करके इनका नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखा ओर नई दुनिया की स्थापना का कार्य प्रारंभ किया। इनके जीवन की एक पुस्तक उपलब्ध है जिसका नाम है जीवन को पलटाने वाली अद्भुत जीवन कहानी। इसके भाग एक ओर भाग दो… दो पुस्तकें बनीं हुई है इनको हर भाई-बहनों को जरूर पढ़ना चाहिए। ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जिस व्यक्ति ने पुरे 84 जन्म लिए ओर अन्तिम 84वां जन्म कैसा रहा यह जानना बहुत जरूरी है। तो हमें अभी से ही ब्रह्मा बाबा की जीवनी का अध्ययन प्रारम्भ कर देना चाहिए और अपने आप को कैसे ब्रह्मा बाबा यानी बाप समान बनकर अव्यक्त सन 1880 में एक गांव के विनम्र स्कूल मास्टर के घर में ब्रह्मा बाबा/ दादा लेखराज कृपलानी का जन्म हुआ।




हिन्दू धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार लेखराज का पालन-पोषण हुआ। बहुत छोटी उम्र में अनेकानेक काम करने के बाद उन्होंने हीरे-जवाहरातों का व्यवसाय कोलकाता में शुरू किया, जिसमें उन्होंने एक हीरा विक्रेता के रूप में बाद में बहुत नाम कमाया। पांच बच्चों के पिता …दादा लेखराज अपने समाज का भी नेतृत्व करते थे। जो अपने सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते थे। सन 1936 में उम्र के उस पड़ाव में जब सामान्यत: सभी लोग सेवा निवृत्ति की तैयारी करते हैं तब उन्होंने वास्तव में अपने जीवन के एक सक्रिय और आकर्षक पड़ाव में प्रवेश किया। गहरी आध्यात्मिक समझ और साक्षात्कारों की श्रृंखला के पश्चात् उन्होंने एक सशक्त आकर्षण को महसूस किया और अपने व्यवसाय को समेट कर अपना समय, शक्ति और धन को इस विद्यालय की स्थापना अर्थ खर्च किया जो बाद में ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय बना। सन् 1937 से 1938 के बीच में उन्होंने 8 युवा बहनों की एक व्यवस्थापकीय कमेटी बनाई और अपनी सर्व चल-अचल सम्पत्ति इस ट्रस्ट को समर्पित कर दी। ऐसे थे यादगार स्वरूप हमारे प्यारे ब्रह्मा बाबा ऐसे महापुरुष शत् शत् नमन।