Breaking
Sun. Jun 8th, 2025

15 दिसंबर 1876 में जन्मे दादा लेखराज बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईमानदार थे: राजयोगिनी बीके पूनम बहन

By News Desk Dec 16, 2024
Spread the love

ब्रह्म बाबा की उच्च शिक्षाएं नारी शक्ति में भर रही दुनिया बदलने के संस्कार

बाबा की याद में दुनिया भर में लाखो बहन भाई दें रहे जीवन को नई दिशा

अतुल्य भारत चेतना
सुरेंद्र सिंह

चंडीगढ़। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा का जन्मोत्सव 15 दिसम्बर को पूरे विश्व में बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया। उनके आध्यात्मिक अभियान ने नारी को शक्ति बनाने का ऐसा संकल्प लिया जो देश दुनिया की नारी शक्ति के लिए वरदान बन गया। बाबा ने अपनी सारी जमीन-जायजाद बेचकर ट्रस्ट बनाया। संचालन की जिम्मेदारी बहनों को सौैंपी और खुद हो गए पीछे। पूरी दुनिया आज बाबा को नमन कर रही है व उनकी शिक्षाओं को जीवन में धारण कर आगे बढ़ने का संकल्प ले रही है। चंडीगढ़ की राजयोगिनी बीके पूनम बहन रहती है कि बाबा 18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में अव्यक्त हुए थे । एक नजर डाले तो पता चलता है की वर्ष 1937 में किया गया ब्रह्मा बाबा का संकल्प आज हो रहा साकार। नारी को शक्तिशाली बनाने की उनकी सोच नारी को सबलता की ओर ली जा रही है। हीरों के जौहरी से विश्व शांति के मसीहा तक का सफर बहुत ही शानदार था व वह दुनिया में नारी के लिए लंबा प्रभाव छोड़ने वाला रहा है। खास तौर पर बहनों के लिए बाबा वो संस्था थे। वो विचार थे जिसने पूरी दुनिया में बड़े स्तर पर बदलाव ने केवल किया बल्कि लोगों को भी बदलाव के लिए संकल्पित किया। राजयोगिनी बीके पूनम बहाने बताया कि जीवन की एक घटना ने बदल दिया था दादा का जीवन। ध्यान में परमात्मा की अनुभूति होने पर संसार से आया वैराग्य, हीरों-जवाहरात का कारोबार समेटकर सारी जमा पूंजी से बाबा ने रखी थी ब्रह्माकुमारीज की नींव।
बीके पूनम कहती है कि भारतीय पुरातन संस्कृति आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन की शिक्षा ही बाबा के जीवन का मुख्य आधार रही है। बाबा की शिक्षाएं स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के नारे के साथ संचालित है संस्थान। बीके राजयोगिनी पूनम बहन ने बताया कि सात साल पूरे नियम-संयम से चलने के बाद ब्रह्मा बनने की होती है ट्रेनिंग पूरी।माउंट आबू राजस्थान में है अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय बनाया है जो दुनिया को शांति का संदेश देता आ रहा है

फैक्ट-
87 वर्ष पूर्व 1937 में हुई प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्था की शुरुआत आज
140 देशों में सेवाकेंद्र संचालित की रही है।
पूनम बहन के अनुसार
5 हजार सेवाकेंद्र देशभर में संचालित।
46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित।
20 लाख लोग नियमित विद्यार्थी।
2 लाख बालब्रह्मचारी युवा सदस्य।
1970 में विदेशी सरजमीं पर शुरुआत।
7 पीस मैसेंजर अवार्ड यूएनओ से दिए।
20 प्रभागों के माध्यम से समाज के सभी वर्ग की सेवा ।
बीके पूनम बहन कहती है कि नारी नरक का द्वार नहीं सिर का ताज है, नारी अबला नहीं सबला है, वह तो शक्ति स्वरूपा है। संस्था में इसी बात पर दिया जाता बल।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और नारी के उत्थान के संकल्प के साथ उसे समाज में खोया सम्मान दिलाने, भारत माता, वंदे मातरम् की गाथा को सही अर्थों में चरितार्थ करने वर्ष 1937 में उस जमाने के हीरे-जवाहरात के प्रसिद्ध व्यापारी दादा लेखराज कृपलानी ने परिवर्तन की नींव रखी।
आज ब्रह्मा बाबा का जन्म है। बार बार उन्हें नमन है।
नारी उत्थान को लेकर उनका दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने अपनी सारी जमीन-जायजाद बेचकर एक ट्रस्ट बनाया और उसमें संचालन की जिम्मेदारी नारियों को सौंप दी। इतने बड़े त्याग के बाद भी खुद को कभी आगे नहीं रखा। लोगों में परिवारवाद का संदेश न जाए इसलिए बेटी तक को संचालन समिति में नहीं रखा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक दादा लेखराज कृपलानी जिन्हें सभी प्यार से ब्रह्मा बाबा कहकर पुकारते हैं।

विदित रहे
18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में संपूर्णता की स्थिति प्राप्त कर बाबा अव्यक्त हो गए थे। लेकिन उन्होंने अपने जीवन में जो मिसाल पेश की उसे आज भी लाखों लोग अनुसरण करते हुए राजयोग के पथ पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। संस्थान की मुख्य शिक्षा और नारा है- स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन और नैतिक मूल्यों की पुनस्र्थापना आदि हैं।

60 वर्ष की उम्र में रखी बदलाव की नींव-

15 दिसंबर 1876 में जन्मे दादा लेखराज बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईमानदार थे। उन्हों परमात्मा मिलन की इतनी लगन थी कि अपने जीवन काल में 12 गुरु बनाए थे। वह कहते थे कि गुरु का बुलावा मतलब काल का बुलावा। 60 वर्ष की आयु में वर्ष 1936 में आपको दुनिया के महाविनाश और नई सृष्टि का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद आपने परमात्मा के निर्देशन अनुसार अपनी सारी चल-अचल संपत्ति को बेचकर माताओं-बहनों के नाम एक ट्रस्ट बनाया, उस समय संस्थान का नाम ओम मंडली था। वर्ष 1950 में संस्थान के माउंट आबू स्थानांतरण के बाद इसका नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय पड़ा। इसकी प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती को नियुक्त किया गया। दादा लेखराज की एक बेटी और दो बेटे थे।

फिर कभी जीवन में पैसों को हाथ नहीं लगाया-

ब्रह्मा बाबा ने माताओं-बहनों को जिम्मेदारी सौंपकर खुद कभी पैसों को हाथ नहीं लगाया। यहां तक कि उनमें इतना निर्माण भाव था कि खुद के लिए भी कभी पैसे की जरूरत पड़ती तो बहनों से मांगते थे। बाबा कहते थे कि नारी ही एक दिन दुनिया के उद्धार और सृष्टि परिवर्तन के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाएगी।

दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़ा संगठन-

बीके पूनम बहन कहते हैं कि ब्रह्माकुमारी संस्थान नारी शक्ति द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा और एकमात्र संगठन है। यहां मुख्य प्रशासिका से लेकर प्रमुख पदों पर महिलाएं ही हैं। नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि यहां के भोजनालय में भाई भोजन बनाते हैं और बहनें बैठकर भोजन करती हैं। संगठन की सारी जिम्मेदारियों को बहनें संभालती हैं और भाई उनके सहयोगी के रूप में साथ निभाते हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भी इस संगठन की सफलता और विशालता को देखते हुए कहा था कि यहां नारी शक्ति ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि नारी को मौका मिले तो वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।

चौथी पास से लेकर पीएचडी डिग्रीधारी बहनें समर्पित-
राजयोग ध्यान का ही कमाल है कि संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका स्व. राजयोगिनी दादी जानकी जो मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ीं थी लेकिन 60 वर्ष की उम्र में वह विदेशी सरजमीं पर पहुंचीं। 90 साल की उम्र तक उन्होंने अकेले 100 से अधिक देशों में भारतीय आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का परचम लहराया। इसके अलावा ज्ञान-ध्यान की बदौलत अनेकों ऐसी बहनें हैं जो आठवीं कक्षा से कम पढ़ी-लिखीं हैं लेकिन जब वह मंच से शक्ति स्वरूपा बनकर दहाड़ती हैं तो लोगों दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। इसके साथ ही संस्थान में डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, वकील, प्रोफेसर, जज, आईएएस से लेकर सिंगर तक हैं जिन्होंने बाकायदा प्रोफेशनल डिग्री लेने के बाद आध्यात्म की राह अपनाई और आज समर्पित रूप से संस्थान में सेवाएं दे रही हैं।
सात साल की तपस्या से गुजरता है ब्रह्माकुमारी बनने का सफर-
संस्थान के साथ जुडऩा तो आसान है लेकिन ब्रह्माकुमारी बहने की रास्ता त्याग-तपस्या से होकर गुजरता है। पहले तीन साल कन्या जब किसी भी सेवाकेंद्र पर रहती है तो उसके आचरण, नियम-संयम को परखकर ट्रायल लिस्ट में नाम आता है। इसके बाद सात साल तक संपूर्ण रीति संस्थान के ईश्वरीय संविधान पर चलने के बाद ही ब्रह्माकुमारी के रूप में समर्पण किया जाता है।

बीके पूनम बहन ने बताया कि140 देशों में पांच हजार सेवाकेंद्र संचालित-
संस्थान के इस समय विश्व के 140 देशों में पांच हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालिता हैं। साथ ही 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। साथ ही दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे और सेवा के लिए राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के तहत 20 प्रभागों की स्थापना की हुई है जिसकी सेवाएं वर्ष भर चलती रहती हैं।
बाबा बहनों को संभाल बनाने का जो प्रयास था वह है सार्थक हो रहा है वह आने वाले समय में इसका स्वरूप और बढ़ेगा इसकी उम्मीद की जा रही है। बाबा के जन्मदिन पर दुनिया भर में लोग योग करते हैं वह उन्हें नमन कर अच्छा बनने का संकल्प धारण करते हैं।

Responsive Ad Your Ad Alt Text
Responsive Ad Your Ad Alt Text

Related Post

Responsive Ad Your Ad Alt Text