आया राखी का त्योहार लेकर ख़ुशियों की भरमार,
भाई बहनों के इस प्यार से सजता घर का दरबार,
सावन ऋतु में मिल कर भैया से बहने गातीं मल्हार,
सज जाता भैया के हाथों पर रक्षा सूत्रों का अंबार।
बहन के फ़र्ज़ निभाता सदा राखी का ये सुन्दर तार,
माथे पर तिलक सा जगमगाता उसके मन का प्यार,
प्रेम के इन धागों में बँधकर आता राखी का त्योहार,
बहन का स्नेह ही उसके भाई की कलाई का श्रृंगार।
भाई बहन का नाता जैसे कृष्ण संग कृष्णा की प्रीत,
सदियों से चली आ रही रक्षाबंधन की ये पावन रीत,
बचपन से संग खेलते, बनते एक दूसरे के परम मीत,
रेशम सा रिश्ता इनका जैसे ममता का सुनहरा गीत।
भाई की बस खुशियाँ माँगे हर बहना अपने ईश्वर से,
नज़र उतारे बलैयाँ लेले पहना कर राखी कलइयां में,
भैया भी अपनी बहना की झोली भर देता उपहारों से,
रक्षा करता साथ निभाता ऊँचे नीचे जीवन पथ पर वे।
कितना प्यारा, खट्टा मीठा नटखट सा ये अटूट बंधन,
जब भी मिलते भाई बहन खिल जाता घर का आँगन,
बचपन की हँसी ठिठोली मीठी यादों का होता संगम,
माँ बाबा की ख़ुशियों को चारचाँद लगाता रक्षाबंधन।
-मणि सक्सेना, मुंबई (महाराष्ट्र)