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पुजारी प्रबंधन की अनदेखी से विकास से दूर होते जा रहा ऐतिहासिक रत्नेश्वर महादेव का मंदिर

By News Desk Jul 26, 2024
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अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप

जीर्ण होते ऐतिहासिक मंदिर के जीर्णोद्धार हेतू नहीं हो रहा कोई पहल

रतनपुर। ऐतिहासिक नगरी रतनपुर प्राचीन काल से ही शिव और शक्ति का साधना स्थली रहा है। जहां शक्ति के रूप में सिद्ध शक्तिपीठ महामाया देवी के साथ ही लखनी देवी, तुल्जा भवानी, सटवाई देवी, कोसगई माता, मरही माता, झिथरी माता, मावली माता आदि सिद्ध शक्तियों का मंदिर है, वहीं बारह ज्योतिर्लिंग स्वरूप यहां बारह ऐतिहासिक शिव मंदिर भी है जो भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। इसमें वृद्धेश्वर महादेव मंदिर के पश्चात करैहापारा के ऐतिहासिक रत्नेश्वर तालाब के पश्चिमी पार में स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर का स्थान है। इस ऐतिहासिक मंदिर की स्थापना सोलहवीं सदी में राजा रत्नसेन ने करवाया था। इसके पूर्व यह मंदिर तालाब के बीच बने टापू में स्थित था जिसे ग्यारहवीं सदी में राजा रत्नदेव ने बनवाया था यहां राजा रत्नसेन की रानी बेदमती जिसके नाम से बेद तालाब है, प्रतिदिन तालाब में आच्छादित पुरइन पत्ते के ऊपर चलकर पूजा करने जाया करती थी जो इनके शिव भक्ति का प्रभाव था। आकार में लगातार बढ़ते जा रहा इस शिव लिंग की महिमा निराली है। मगर इस मंदिर का देख – रेख आज जिनके हाथों है, उनके क्षुद्र स्वार्थ के चलते मंदिर का विकास अवरूद्ध है। राजाओं के समय से ही पीढ़ी गत ये पुजारी है मगर नियमानुसार कभी यहां पूजा पाठ नहीं होता। जबकि मंदिर में पूजा के निमित्त खेती बाड़ी की भूमि भी राजाओं के द्वारा इनके पूर्वजों को प्राप्त है, जिनका लाभ आज ये ले रहे है। मंदिर आज जीर्ण हो गया है जिसके जीर्णोद्धार हेतू कोई पहल नहीं किया जा रहा है। मंदिर में चढ़ावे का उपभोग ही केवल इनके द्वारा किया जाता है जो कि सही नहीं है। लोगों का कहना है कि इस मंदिर को महामाया ट्रस्ट को सौंप देना चाहिए और तभी इस मंदिर का विकास संभव है। वर्तमान में इस मंदिर के पुजारियों में तीन परिवार है, दो परिवार एक एक वर्ष संचालन करते हैं एवं तीसरा परिवार दो वर्ष संचालन करता है। कुछ वर्षों से यही क्रम चल रहा है।जानकारी मिली है, इस वर्ष मंदिर का संचालन जिनके हाथों है उन्होंने सावन के शुरू में ही श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर के सभा मंडप में लगायें गये घंटी को कटवाकर ले गये। इस संबंध में पूछने पर प्रमुख पुजारीन का कहना है कि उस घंटी के जगह दूसरी बड़ी घंटी लगेगा जबकि ऐसा कुछ नहीं लग रहा है। राजाओं के द्वारा मंदिर के निमित्त दी गई भूमि के संबंध में इन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। इस वर्ष नियमानुसार श्रावण मास का पूजन कार्य भी इनके द्वारा नहीं कराया जा रहा है जो कि दुखद है।

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