

अतुल्य भारत चेतना
सत्यम जायसवाल
0.265 हेक्टेयर सिंचित रोपणी में करीब 135 हेक्टेयरमिसिंग एरिया
कोरबा। कोरबा जिले के जंगलों में पौधारोपण के नाम पर बड़ा घोटाला हुआ है। जंगल को सघन वन करने के लिए राज्य सरकार के द्वारा जो लक्ष्य दिए जाते हैं, उन की आड़ में लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रुपए की भ्रष्टाचार किया गया । रोपण के बाद उसकी देखरेख, उसकी सिंचाई में झोल हुई है। अधिकारियों और शासन को अंधेरे में रखकर जंगल में काम हुए हैं, जिसका खुलासा हुआ है। इस तरह का प्रकरण अनेकों मिलने की संभावना है ।एक स्थानीय पत्रकार द्वारा 100 से अधिक आवेदन सूचना के अधिकार तहत मांगा गया गया था, परंतु आज तक किसी प्रकार की जानकारी नहीं दिया गया । सभी आवेदन में गोल गोल जवाब दिया गया। की अमुक धारा में इसकी जानकारी नहीं दे सकते। इस प्रकार का कार्य नहीं हुआ है।
जबकि उक्त विषय की भी जानकारी दर्शाया गया था ।
कटघोरा वन मंडल के पसान रेंज के अंतर्गत आने वाले जलके पिपरिया ऑरेंज वन क्षेत्र का मामला आया है जहां सिंचित रोपणी के नाम पर जितने पौधे रोपे गए थे उनमें से मात्र 25% के लगभग बचे हैं। बाकी भगवान भरोसे है। शासन की योजना को किस तरह से पूरा किया जा रहा है? विभागीय अधिकारियों के साथ-साथ मैदानी अमला पूरी भ्रष्टाचार में लिप्त है । कागजों में हरियाली दिखाई दे रहा है।
सूत्रों से मिली है, उसके मुताबिक पिपरिया पंचायत अंतर्गत वन भूमि पर वर्ष 2020-21 में 150 हेक्टेयर और 115 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचित रोपणी के तहत पौधा रोपण कराया गया , लेकिन फील्ड वर्क सक्रियता नहीं होने के कारण 265 एकड़ विशाल क्षेत्रफल में रोपे गए फलदार, छायादार और ईमारती महत्व के पौधों में से मात्र 25% के लभाग जीवित रह पाए हैं। काला मिट्टी वाली 150 हेक्टेयर भूमि पर करीब 88000 पौधों का रोपण 2021 में कराया गया, जिनमें आंवला, जामुन, नीम, करंज, सागौन, सीरत, सरई, कौहा, महुआ बीजा आदि शामिल थे। इसी तरह 115 हेक्टेयर भूमि पर सीरत, सागौन व करंज के पौधे रोपे गए थे। दुखद बात यह है कि इन 3 वर्षों के भीतर 150 हेक्टेयर के पौधों में से मात्र 25 से 30% और 115 हेक्टेयर रोपणी में से मात्र 25% पौधे ही आज की समय जीवित बचे हैं। इतना ही नहीं, रोपे गए पौधों और योजना की जानकारी देने वाला कोई लेख भी यहां मौजूद नहीं है। जंगल का विस्तार करने, पर्यावरण को संरक्षित करने के नाम पर शासन के द्वारा कैम्पा मद में जो राशि जारी की गई, उसका किस तरह से दुरुपयोग और बंदरबांट हुआ है, इसका यह एक बड़ा उदाहरण है। सूत्रों से के अनुसार विभागीय तौर पर पड़ताल की गई तो 150 हेक्टेयर का , मात्र 90 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण पाया गया और 60 हेक्टेयर मिसिंग एरिया सामने आया है और 90 हेक्टेयर में जो पौधे रोपे गए उनमें भी 25 प्रतिशत ही जीवित बचे हैं। इसी तरह से 115 हेक्टेयर क्षेत्रफल में से 75 हेक्टेयर मिसिंग एरिया निकाला है और 40 हेक्टेयर में जो पौधे रोपे गए, उनमें मात्र 25% ही जीवित पाए गए हैं। मिसिंग एरिया मतलब कि वो जमीन है ही नहीं।।आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ, यह सवाल तो विभागीय जिम्मेदार अधिकारियों से बनता है।
वन विभाग कटघोरा में ऐसे ऐसे काफी भ्रष्टाचार उजागर होने की संभावना है।