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Sat. Jul 26th, 2025
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दर्द में भीतर ही भीतर टूट कर।
रो पड़ा साहिल पे सागर टूट कर।

उनकी यादें तो निकलने से रहीं,
रह गया सीने में नश्तर टूट कर।

ज़ीस्त में फ़िर टूटने का ग़म न हो,
चूम लूँ उसको जो पल भर टूटकर।

इक सदी से बह रहे झरने मगर,
वो रहा पत्थर का पत्थर टूट कर।

ऐ मेरी पलकों ठहर जाओ ज़रा,
फिर कहाँ बनता है मंज़र टूट कर।

मोल पूछा प्रेम का राधा ने जब,
हो गए कान्हा निरुत्तर टूट कर।

टूट कर जुड़ना कहाँ आसान है,
टूट जाते हैं अधिकतर टूट कर।

खुद को खुद से जोड़ने की चाह में,
दिल बिखर जाता है अक्सर टूट कर।

-जे.पी. नाचीज़

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