
अतुल्य भारत चेतना
वीरेंद्र यादव
हर वर्ष आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के अगले दिन कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही गणपति बाप्पा के निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक के आय, सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करते हैं। आइए, कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं-
शुभ मुहूर्त:-
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 25 जून को देर रात 01 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी और अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 25 जून को ही रात 11 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से तिथि से गणना की जाती है। अतः 25 जून को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। साधक 25 जून को भगवान गणेश के निमित्त व्रत रख गजानन की पूजा-उपासना कर सकते हैं। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्र दर्शन का शुभ समय 10 बजकर 27 मिनट पर है।
शिववास योग:-
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर शिववास योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन देवों के देव महादेव देर रात 11 बजकर 10 मिनट तक कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इसके बाद भगवान शिव नंदी पर विराजमान रहेंगे। भगवान शिव के कैलाश और नंदी पर आरूढ़ रहने के दौरान शिवजी की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस समय में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि:-
चतुर्थी तिथि के दिन प्रथमपूज्य गणपति की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए. इसके लिए संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन सुबह जल्दी स्नान करें. फिर पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनें. पूजा स्थल को साफ करें. गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें. फिर चौकी पर पीले या लाल रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.
गणपति बप्पा को हल्दी, कुमकुम और अक्षत से तिलक लगाएं. उन्हें फूल माला, दूर्वा, फल, मोदक, लड्डू अर्पित करें. देसी घी का दीपक जलाएं. इसके बाद संकष्टी चतुर्थी कथा का पाठ करें. गणेश जी के मंत्रों जाप करें. आखिर में गणेश जी की आरती जरूर करें. शाम को फिर से गणेश जी को भोग लगाएं, आरती करें. चंद्रोदय होने पर चंद्र देव को अर्घ्य दें. फिर प्रसाद से व्रत खोलें. ध्यान रहे कि इस व्रत का पारण करते हुए सात्विक भोजन ही करें. चतुर्थी के दिन ना तो तामसिक चीजों का सेवन करें और ना ही घर में तामसिक चीजें लाएं. चतुर्थी व्रत रखने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है.
संकष्टी चतुर्थी व्रत महत्व:-
सनातन धर्म में भगवान गणेश की सर्वप्रथम पूजा की जाती है। भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम विघ्नहर्ता है। भगवन गणेश की पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है। भजन समेत विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर जाकर गणपति जी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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