
जब मृदुल हृदय को चोट लगे ।
अन्तर मे कोई पीर जगे ।
आंखे ना खुल कर रो पायें ।
ना अश्रु घाव को धो पायें ।
जब मन चोटिल हो जाता है ।
जब कहीं चैन ना पाता है ।
आंखों से बह करके सरिता ।
जब सूखे अधर भिगोती है ।
तब कोई कविता होती है ।
जब रोटी बैरन हो जाये ।
साजन परदेश से ना आयें ।
मादक बसन्त की मधुर गन्ध ।
तन मन मे अगन लगाती हो।
जब प्रियतम की यादें केवल ।
सासें बन आती जाती हो ।
जब विरहन कोई साजन की ।
पाती पढ़ – पढ़ कर रोती है ।
तब कोई कविता होती है ।
जब अल्पकाल मे निर्धनता से ।
रुग्ण कोई मर जाता है ।
अपने पीछे जब कइयों को ।
कोई अनाथ कर जाता है ।
भूखी काया बाजारों मे ।
रोटी खातिर बिक जाती है ।
जब देह बेच कर कोई मां ।
बच्चों का खाना लाती है ।
जब खेल खिलौने बेंच – बेंच कर ।
बचचन यौवन पाता है ।
जब कोई विधवा का दुलार ।
बापू का कर्ज चुकाता है ।
कोमल बचपन की लाचारी ।
जब जूठे बरतन धोती है ।
तब कोई कविता होती है ।
-महेश मिश्र (मानव)
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