
तेरी अज़मत पे क़ुर्बान हैं जानोतन
मेरे हिंदुस्ता, मेरे प्यारे वतन
है हिमालय की बाहे मुहाफ़िज तेरी
तेरी गोदी में खेले हैं गंगो जमन
मेरे हिंदुस्ता मेरे प्यारे वतन
वो बनारस की सुबह वो शाम-ए-अवध
कितना पुर कैफ़ है ये शब-ए-मालवा
गुनगुनाती फिरे हैं हर तरफ़
सूहे कश्मीर से जो चले हैै पवन
मेरे हिंदुस्ता मेरे प्यारे वतन
लहलहाती हुई खेत की मेड़ पर
जब किसानों की टोली चली झूम कर
गु़लबदन चूड़ियां खनखनाने लगे
ता क़यामत रहेगा यही बांकपन
मेरे हिंदुस्ता मेरे प्यारे वतन
-डॉ. नफ़ीस तक़ी
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