पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के सान्निध्य में 16 से 23 सितंबर तक श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन स्टेडियम ग्राउंड, हाईस्कूल परिसर, के पास कटघोरा, छत्तीसगढ़ में किया जा रहा है। श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस की शुरुआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई, जिसके बाद पूज्य महाराज जी ने भक्तों को ‘मेरी लगी श्याम संग प्रीत, ये दुनिया क्या जाने’ भजन का श्रवण कराया और बताया कि गुरु मनुष्य को संसार से बचा कर भगवान में लगाते हैं। जितना हो सके मनुष्य को उतना समय भगवान को देना चाहिए, क्योंकि अंततः मनुष्य को भगवान में ही लीन हो जाना है। धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, अच्छा -बुरा इन सबका ज्ञान मनुष्य को अपने ऋषियों के द्वारा प्राप्त हुआ है। उन्होने बताया कि श्राद्ध करते समय अगर मनुष्य के मन में श्रद्धा नहीं है, तो वह श्राद्ध स्वीकार नहीं होगा एवं श्राद्ध हमेशा श्रद्धा से ही किया जाता है, क्योंकि पित्रों के प्रसन्न होने से मनुष्य के सारे काम बन जाते हैं। उन्होंने ऋषि पंचमी के महत्व को बताते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति अगर ऋषि पंचमी ‘का व्रत करता है, तो उसे नर्क नहीं जाना पड़ता, एवं अनजाने में मनुष्य द्वारा किए हुए पाप ऋषि पंचमी का व्रत करने से नष्ट हो जाते हैं, मनुष्य की दुर्गति भी नहीं होती। अंतिम सत्य तो यही है कि जितना भी मनुष्य के पास है वो सब अनिश्चित है, केवल मृत्यु ही निश्चित है। उन्होने बताया कि जो मित्र अपने मित्र के दुःख में दुखी न हो वो सच्चा मित्र नहीं होता एवं जो अपना दुःख भूलकर अपने मित्र की ख़ुशी में खुश होता है, सच्चा मित्र वही होता है। देवकीनंदन ठाकुर जी ने कहा कि श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर संकट आने से पहले ही टाल देते हैं एवं उस मनुष्य का जन्म धन्य होता है जिनका भगवान के साथ संबंध जुड़ा होता है।

