अतुल्य भारत चेतना
बाबू लाल कुमावत
जयपुर। विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर जोबनेर पीजी कॉलेज के वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर बी.एल.कुमावत ने बताया की पुस्तकें संचित ज्ञान की जलती हुई दीपक हैं।पुस्तकों में वह शक्ति होती है, जो किसी नरक को स्वर्ग बना देती है मतलब पुस्तकों के सानिध्य मे रहकर के व्यक्ति अपने अंधकारमय जीवन में उजाला ला सकता है, मानव के सामने अज्ञानता रूपी आवरण को किताबों के ज्ञान रूपी भंडार के द्वारा आसानी से हटाया जा सकता है,

किताबें व्यक्ति के दिमाग को खोलती हैं, आपकी सोच को बड़ा करती हैं, और आपको मजबूत बनाती हैं ऐसा ओर कोई नही कर सकता किताबें एकांत में हमारा साथ देती हैं और हमें खुद पर बोझ बनने से बचाती हैं अगर आप सिर्फ वही किताबें पढ़ते हैं जो बाकी सभी पढ़ रहे हैं, तो आप वही सोच पाएंगे जो बाकी सभी सोच रहे हैं। किताबे सभ्यता की वाहक हैं। किताबों के बिना इतिहास मौन है, साहित्य गूंगा हैं, विज्ञान अपंग हैं, विचार और अटकलें स्थिर है। ये परिवर्तन का इंजन हैं, विश्व की खिड़कियां हैं, समय के समुद्र में खड़ा प्रकाशस्तंभ हैं। पुस्तकें वह विरासत हैं जो मानव जाति के लिए एक महान प्रतिभा छोड़ती हैं, जो पीढ़ी से पीढ़ी तक उन लोगों तक पहुंचाई जाती हैं, जो अभी तक जन्मे नही हैं।

23 अप्रैल 1564 को एक ऐसे लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा था, जिनकी कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ। यह लेखक था शेक्सपीयर। जिसने अपने जीवन काल में करीब 35 नाटक और 200 से अधिक कविताएं लिखीं। साहित्य-जगत में शेक्सपीयर को जो स्थान प्राप्त है उसी को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 से और भारत सरकार ने 2001 से इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की आज शेक्सपियर को संपूर्ण विश्व में जाना जाता है वर्तमान समय में कहानी, कविताएं, ज्ञान रूपी मनोरंजन एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अनेक किताबें मिल रही है जिन के माध्यम से व्यक्ति बड़ी से बड़ी राजकीय सेवा में जाकर के देश की सेवा कर रहा है और आने वाली पीढ़ी को भी वह प्रेरित कर रहा है किताबे सबसे शांत और सबसे सदाबहार दोस्त हैं ये सबसे सुलभ और बुद्धिमान काउंसलर हैं ओर सबसे धैर्यवान शिक्षक है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को किताबों की गरिमा को समझते हुए उनको सहर्ष सम्मान देना चाहिए।
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