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Bahraich News; अवधी महोत्सव: भारत-नेपाल के साहित्यकारों ने अवधी भाषा, साहित्य और संस्कृति को किया जीवंत

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अतुल्य भारत चेतना
रईस

रुपैडिहा/बहराइच। भारत-नेपाल की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनकर अवधी महोत्सव 31 जुलाई 2025 को नेपालगंज (बांके, नेपाल) के सोनाखरी रेस्टोरेंट में बड़े हर्षोल्लास के साथ आयोजित हुआ। गोस्वामी तुलसीदास की 526वीं जयंती और गुड़िया नागपंचमी पर्व के अवसर पर आयोजित इस महोत्सव का आयोजन अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान केंद्रीय समिति, नेपालगंज द्वारा किया गया। भारत और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न राज्यों से आए अवधी भाषा के साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों, और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी ने इस कार्यक्रम को यादगार बना दिया। अवधी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले साहित्यकारों को सम्मानित किया गया, जबकि पारंपरिक लोकगीत, कविता पाठ, और विचार गोष्ठियों ने उपस्थित जनसमूह को अवधी की समृद्ध विरासत से जोड़ा।

अवधी महोत्सव का उद्देश्य और महत्व

अवधी महोत्सव का आयोजन गोस्वामी तुलसीदास की 526वीं जयंती के उपलक्ष्य में किया गया, जिन्हें अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना के लिए जाना जाता है। यह महोत्सव अवधी भाषा, साहित्य, और संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने का एक महत्वपूर्ण मंच है, जो भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक एकता को मजबूत करता है। अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान केंद्रीय समिति, नेपालगंज के वरिष्ठ कार्यकर्ता जगदंबा पाठक ने बताया, “यह महोत्सव भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक सेतु का कार्य करता है। अवधी भाषा और संस्कृति हमारी साझा विरासत है, जिसे संजोने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हमारी है।”

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गुड़िया नागपंचमी के अवसर पर आयोजित यह कार्यक्रम अवधी संस्कृति के लोक परंपराओं को भी सामने लाया, जिसमें नागपंचमी से जुड़े रीति-रिवाज और लोकगीत विशेष रूप से शामिल थे। यह आयोजन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता को रेखांकित करने में सफल रहा।

कार्यक्रम का विवरण

महोत्सव का शुभारंभ पारंपरिक दीप प्रज्वलन और अवधी लोकगीतों की प्रस्तुति के साथ हुआ। भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, और अन्य राज्यों के साथ-साथ नेपाल के बांके, बर्दिया, और कैलाली जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों से आए साहित्यकारों और कवियों ने कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम में निम्नलिखित गतिविधियां प्रमुख थीं:

  1. कविता पाठ: अवधी भाषा में रचित कविताओं का पाठ हुआ, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं से लेकर समकालीन अवधी कविताओं तक शामिल थीं। इन कविताओं ने अवधी की मधुरता और भावनात्मक गहराई को दर्शाया।
  2. लोकगीत प्रस्तुति: पारंपरिक अवधी लोकगीतों, जैसे सोहर, कजरी, और फाग, ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन गीतों में अवधी संस्कृति की ग्रामीण और आध्यात्मिक झलक देखने को मिली।
  3. विचार गोष्ठी: अवधी भाषा के संरक्षण और प्रचार पर विचार-विमर्श हुआ, जिसमें साहित्यकारों ने अवधी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने और स्कूलों में पढ़ाए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
  4. सम्मान समारोह: अवधी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने वाले साहित्यकारों, कवियों, और कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके योगदान को मान्यता देने और अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए था।

जगदंबा पाठक ने कहा, “अवधी भाषा हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग है। इस महोत्सव के माध्यम से हम न केवल अपनी विरासत को जीवित रख रहे हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को इससे जोड़ रहे हैं।”

भारत-नेपाल की सांस्कृतिक एकता

अवधी महोत्सव ने भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रुपैडिहा, जो भारत-नेपाल सीमा पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र है, इस आयोजन के लिए उपयुक्त स्थान था। नेपालगंज में आयोजित यह कार्यक्रम दोनों देशों के साहित्यकारों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक मंच प्रदान करता है, जहां वे अवधी भाषा और संस्कृति के संरक्षण पर विचार साझा करते हैं।

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नेपाल के बांके जिले के साहित्यकार रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, “अवधी हमारी साझा भाषा और संस्कृति है, जो भारत और नेपाल को जोड़ती है। तुलसीदास जी की रामचरितमानस दोनों देशों में समान रूप से पूजनीय है। इस महोत्सव ने हमें एक-दूसरे के और करीब लाया।” भारत के साहित्यकारों ने भी इस आयोजन को अवधी की वैश्विक पहचान बढ़ाने की दिशा में एक कदम बताया।

अवधी भाषा और संस्कृति की समृद्धि

अवधी भाषा, जो हिंदी की एक उपभाषा है, उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाती है। यह भाषा अपनी मधुरता, साहित्यिक समृद्धि, और भक्ति साहित्य के लिए जानी जाती है। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस और मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत जैसी रचनाओं ने अवधी को साहित्यिक वैभव प्रदान किया है। इसके अलावा, अवधी लोकगीत, नृत्य, और परंपराएं, जैसे कजरी, बिरहा, और फाग, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखती हैं।

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हालांकि, आधुनिक समय में अवधी भाषा को संरक्षण और प्रचार की आवश्यकता है, क्योंकि युवा पीढ़ी में इसका उपयोग कम हो रहा है। इस महोत्सव ने अवधी को पुनर्जनन और इसे शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की मांग को बल दिया।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

अवधी महोत्सव ने न केवल साहित्यकारों और कवियों को एक मंच प्रदान किया, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ा। उपस्थित जनसमूह ने भावपूर्ण प्रस्तुतियों का आनंद लिया और अवधी की समृद्ध विरासत से रूबरू हुआ। यह आयोजन भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र में सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने और अवधी भाषा को जीवित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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स्थानीय कार्यकर्ता श्याम सुंदर तिवारी ने कहा, “यह महोत्सव हमें हमारी जड़ों की याद दिलाता है। अवधी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए ऐसे आयोजनों की नियमित आवश्यकता है।” उन्होंने सुझाव दिया कि स्कूलों में अवधी साहित्य को शामिल करने और डिजिटल मंचों पर इसके प्रचार से भाषा को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जा सकता है।

समापन

नेपालगंज में आयोजित अवधी महोत्सव भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक एकता का एक जीवंत उदाहरण रहा। गोस्वामी तुलसीदास की 526वीं जयंती और गुड़िया नागपंचमी के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम ने अवधी भाषा, साहित्य, और संस्कृति की समृद्धि को सामने लाया। कविता पाठ, लोकगीत, विचार गोष्ठियां, और सम्मान समारोह ने इस आयोजन को यादगार बनाया। अवधी सांस्कृतिक प्रतिष्ठान केंद्रीय समिति, नेपालगंज ने इस महोत्सव के माध्यम से दोनों देशों के साहित्यकारों को एक मंच पर लाकर अवधी की विरासत को संजोने और प्रचारित करने का सराहनीय कार्य किया। यह आयोजन भविष्य में भी अवधी भाषा और संस्कृति को जीवित रखने और इसे वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में प्रेरणा देगा।

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