अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
कांधला। कस्बा कांधला के प्रख्यात आलिम-ए-दीन और रूहानी शख्सियत मौलाना वसीम उल हसन कांधलवी का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार को निधन हो गया। 75 वर्ष की आयु में उनके इंतकाल की खबर से इस्लामिक तालीम, दीनी खिदमात, और साहित्यिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गई।
जीवन और योगदान
मौलाना वसीम उल हसन ने अपनी पूरी जिंदगी इस्लामिक शिक्षा, दीनी खिदमात, और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित कर दी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मदरसा कासिम उल उलूम में हुई, जिसके बाद उन्होंने मजाहिर उलूम, सहारनपुर से फाजिल की डिग्री प्राप्त की। वे अरबी, उर्दू, और फारसी भाषाओं में निपुण थे और इन भाषाओं में शायरी के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे। उनकी शायरी और लेखन में गहरी आध्यात्मिकता और सामाजिक चेतना झलकती थी।
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मौलाना साहब एक धार्मिक शिक्षक होने के साथ-साथ एक प्रख्यात लेखक भी थे। उनकी इल्मी काबिलियत का एक प्रमुख उदाहरण प्रसिद्ध अदीब रियासत अली ताबिश की किताब “हरीम-ए-अदब” में उनके द्वारा किए गए अरबी अशआर के उर्दू अनुवाद हैं, जो साहित्य प्रेमियों के लिए एक अनमोल योगदान माना जाता है। उनकी रचनाएँ और शिक्षाएँ दीनी और अदबी दोनों क्षेत्रों में प्रेरणा का स्रोत रही हैं।
परिवार का दुख
मौलाना के पुत्र मौलाना मिराज उल हसन ने गहरे दुख के साथ कहा,
“अब्बा हुजूर का साया उठ जाना हमारे लिए बेहद तकलीफदेह है। वो न केवल हमारे परिवार के मार्गदर्शक थे, बल्कि दीन की राह के रहबर और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत थे।”
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शोक संवेदनाएँ
मौलाना वसीम उल हसन के इंतकाल पर कई दीनी और अदबी हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। इनमें कारी मोहम्मद सुफयान, रियासत अली ताबिश, शायर अकरम फयाजी, मौलाना बरकतुल्लाह अमीनी, और डॉ. अजमतुल्लाह खान शामिल हैं। सभी ने उनके दीनी और साहित्यिक योगदान को याद करते हुए गहरा दुख जताया और उनके लिए जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम की दुआ की।
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समुदाय की प्रतिक्रिया
मौलाना के निधन की खबर से कांधला और आसपास के क्षेत्रों में शोक का माहौल है। उनके शिष्य, अनुयायी, और साहित्य प्रेमी उनकी शिक्षाओं और रचनाओं को याद कर रहे हैं। मौलाना वसीम उल हसन की सादगी, विद्वता, और समाज के प्रति उनके समर्पण को हमेशा याद किया जाएगा।
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प्रार्थना
अल्लाह तआला मरहूम को जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम अता फरमाए और उनके परिवार व शिष्यों को इस मुश्किल घड़ी में सब्र व हौसला दे। आमीन।