अतुल्य भारत चेतना
रईस
बहराइच। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम (रोडवेज) की बसों में सांसद, विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, और मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्था लंबे समय से लागू है। इस व्यवस्था का उद्देश्य लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना और जनप्रतिनिधियों व पत्रकारों के माध्यम से जनता के साथ संवाद बनाए रखना है। लेकिन वर्तमान स्थिति इसके विपरीत नजर आती है। आरक्षित सीटें या तो खाली रहती हैं या फिर पत्रकारों को इनका लाभ लेने के लिए परिचालकों से संघर्ष करना पड़ता है।
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जमीनी हकीकत: नेताओं की अनुपस्थिति, पत्रकारों का संघर्ष
आज के समय में सांसद और विधायक जैसे जनप्रतिनिधियों को रोडवेज बसों में यात्रा करते देखना दुर्लभ हो गया है। अधिकांश नेता सरकारी या निजी लक्जरी वाहनों को प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण बसों में उनके लिए आरक्षित सीटें बेकार रहती हैं। दूसरी ओर, मान्यता प्राप्त पत्रकारों को भी इन सीटों का लाभ मिलना मुश्किल हो गया है। कई पत्रकारों ने शिकायत की है कि बस परिचालक उन्हें आरक्षित सीट देने से इनकार कर देते हैं। कुछ परिचालकों को तो यह जानकारी ही नहीं होती कि पत्रकारों के लिए भी सीटें आरक्षित हैं।
हाल ही में एक गैर-सरकारी सर्वे और पत्रकार संगठनों के डेटा ने इस स्थिति को और स्पष्ट किया है:
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- केवल 40% बसों में आरक्षित सीटों की व्यवस्था का पालन किया जाता है।
- केवल 35% परिचालकों को पत्रकारों के लिए आरक्षण की जानकारी है।
- 52% पत्रकारों ने सीट न मिलने की शिकायत दर्ज की।
- 5% से भी कम जनप्रतिनिधियों को बसों में यात्रा करते देखा गया।
- 87% बसों में आरक्षण केवल स्टिकर या बोर्ड तक सीमित है।
- केवल 30% मामलों में पत्रकारों को सम्मानजनक व्यवहार मिला।
एक पत्रकार ने अपनी आपबीती साझा करते हुए बताया, “परिचालक ने मेरे मान्यता कार्ड को देखकर कहा, ‘ये कार्ड हम क्या देखें, आगे जाकर बैठिए।’ मैं लटककर यात्रा करने को मजबूर था।” कई यात्रियों ने भी देखा कि आरक्षित सीटों पर जरूरतमंद लोगों को बैठने नहीं दिया जाता, जिससे यह व्यवस्था केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।
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परिवहन विभाग का रुख
परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आरक्षित सीटों की व्यवस्था पूरी तरह लागू है और परिचालकों को इसके लिए स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। एक अधिकारी ने कहा, “यदि कहीं नियमों का पालन नहीं हो रहा है, तो शिकायत मिलने पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी।” हालांकि, जमीनी स्तर पर इस व्यवस्था का प्रभावी कार्यान्वयन न होने से पत्रकारों और यात्रियों में असंतोष बढ़ रहा है।
लोकतंत्र पर सवाल
यह स्थिति गंभीर सवाल खड़े करती है। क्या आरक्षित सीटों की व्यवस्था केवल कागजी औपचारिकता बनकर रह गई है? क्या जनप्रतिनिधि और पत्रकार, जो लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जनता से कटते जा रहे हैं? आरक्षित सीटें केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी और समानता का संकेत हैं। जब जनप्रतिनिधि बसों में दिखाई नहीं देते और पत्रकारों को लटककर यात्रा करनी पड़ती है, तो यह न केवल व्यवस्था पर, बल्कि लोकतांत्रिक सोच पर भी सवाल उठाता है।
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अपील
रोडवेज बसों में आरक्षित सीटों की व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत और व्यवहारिक बदलाव की आवश्यकता है। परिवहन विभाग को परिचालकों और कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण देना चाहिए, ताकि वे आरक्षण व्यवस्था की महत्ता को समझें। साथ ही, जनप्रतिनिधियों को भी जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए रोडवेज बसों का उपयोग करने पर विचार करना चाहिए। यह न केवल जनता के साथ उनके जुड़ाव को बढ़ाएगा, बल्कि इस व्यवस्था को सार्थक भी बनाएगा।