हर ओर पसरी है गंदगी
भागकर किधर जाओगे
जिधर भी जाओगे तुम
उधर गंदगी ही पाओगे।
कलयुग का है जमाना
गंदगी में बसती है कलि
भ्रष्टाचारी और अन्यायी
कलयुग में है आज बली
फिर सदाचरण कर के तुम
यहां कहां रह पाओगे।
हर ओर पसरी है गंदगी
भागकर किधर जाओगे।
अन्यायी दुर्योधन ने आज
कलयुग में पांव जमाया है
गांडीवधारी अर्जुन को
रण भूमि से भगाया है।
कृष्ण भी असहाय खड़े है
गीता ज्ञान कहां अब पाओगे।
हर ओर पसरी है गंदगी
भागकर किधर जाओगे।
दानवता के अंधियारे में
मानवता आज सिमट रहे
दुराचार,अनैतिकता के आगे
सदाचार आज निपट रहे।
संस्कार हीन पीढ़ियां इन्हें
कैसे क्या समझाओगे।
हर ओर पसरी है गंदगी
भागकर किधर जाओगे।
करते रामराज्य की कल्पना
करना तुम्हारा व्यर्थ है
नहीं सुधरेंगे कलयुगी मानव
करते अर्थ का ये अनर्थ है।
घर घर में है रावण छिपा
इतने राम कहां से लाओगे।
हर ओर पसरी है गंदगी
भागकर किधर जाओगे।
प्रमोद कश्यप, स्वरचित, मौलिक