अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप
रतनपुर/छत्तीसगढ़। पौराणिक नगरी रतनपुर का यह पवित्र प्रांगण प्राचीन काल में देवाधिदेवो की सभागृह थी। यह सांसारिक प्रपंचों से दूर सिद्ध मुनि और योगियों की तपोभूमि थी। इसी कारण से यहां की मिट्टी आज भी भक्तों को दुर्लभ भक्ति प्रदान करती है। इसके पूर्व उत्तरार्द्ध में दक्षिण मुखी हनुमान जी का मंदिर स्थित है, जिसे गिरजा बंद हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है।

गिरजा बंद हनुमान मंदिर का निर्माण है हयवंशी राजा रत्नदेव का ज्येष्ठ पुत्र राजा पृथ्वीदेव ने संवत् १००० के लगभग करवाया था। बताया जाता है कि एक बार राजा पृथ्वीदेव को स्वप्न में हनुमान जी ने प्रकट होकर अपना मंदिर निर्माण कराने को कहा। राजा पृथ्वीदेव हनुमान जी के परम भक्त थे। उन्होंने हनुमान जी से पूछा- प्रभु मंदिर में स्थापना हेतू मूर्ति कहां मिलेगी। तब हनुमान जी ने जवाब दिया- वत्स मेरी मूर्ति तुझे महामाया कुंड में से निकली हुई सप्त मूर्तियों के बीच प्राप्त होगी। इस समय मैं कुंभ लता के मध्य विराजित हूं। मैं अहिरावण की आराध्या देवी कुमुदा के वेष में अलंकृत तुम्हें साक्षात गिरजा सदा शिवम् की भांति प्राप्त होऊंगा। तू मेरा परम भक्त हैं। अतः तू महामाया का रक्षक लंगूर रुपी मूर्ति को लाकर इस रत्नभूमि के उत्तरार्द्ध में स्थापित कर। मैं तुम्हारा हर मनोकामना पूर्ण करुंगा। और इस घोर कलयुग में जो भी मनुष्य मेरी उस मूर्ति की पूजा करेंगे उसकी भी मनोकामना पूर्ण होंगी।

इस तरह से राजा ने स्वप्न में कहें गये हनुमान जी की बातों को शिरोधार्य कर प्रात: उठकर स्नान ध्यान करके महामाया कुंड से हनुमान जी की मूर्ति को लाकर गिरजा बंद में स्थापित किया। और तत्पश्चात मंदिर का निर्माण कराया। इस स्थान का गिरजा बंद नाम पड़ने के भी कई कारण बताए जाते हैं। कुछ लोग गिरजा से जुड़े बंद के स्थान पर बंध को मान्यता देते हैं उनका कहना है कि यह स्थान पहाड़ों से निकली दो धाराओं को बांधने से बनी होने के कारण बांध अर्थात बंध और गिरजा को मिलाकर गिरजा बंध है। कुछ लोग इसे पर्वतराज हिमांचल की कन्या माता गिरजा की तभोभूमि होने के प्रसंग में गिरजा वन की संज्ञा देते हैं। कुछ की धारणाएं राजा पृथ्वीदेव की घराने से जुड़ी हुई है।

वे कहते हैं-रानी गिरजा के यादगार में इस स्थान का नाम गिरजा बंद ही है। स्थान का नाम चाहे जो भी हो यहां मंदिर में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा बड़ी ही विलक्षण है। दो निशाचरो के ऊपर खड़ी यह मूर्ति देवी के श्रृंगार में विभूषित हैं। इसके वाम कंधे पर भगवान श्रीराम विराजित हैं। मूर्ति की आकृति के संबंध में यह प्रतीत होता है जैसे कि लंका में युद्ध के समय अहिरावण राम-लक्ष्मण को हरण करके ले गया था उस समय श्री राम ने अपने भक्त हनुमान जी को संकट निवारणार्थ याद किया था। जिससे हनुमान जी रौद्र रूप धारण किए देवी के स्थान पर प्रकट हो गये थे और प्रस्थित देवी कुमुदा रसातल में चली गई। इस तरह से देवी कुमुदा के स्थान पर जिस रूप में हनुमान जी अहिरावण का संहार करने के लिए अपना रुप धारण किए उसी रुप में यहां गिरजा बंद हनुमान मंदिर में हनुमान जी विराजित हैं।