Tamil bhasha ke vikas ke liye dhan avantan: mrt bhasha Sanskrit se adhik avashyak
तमिल भाषा, जो विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध भाषाओं में से एक है, आज भी करोड़ों लोगों द्वारा बोली और लिखी जाती है। दूसरी ओर, संस्कृत को एक पवित्र और शास्त्रीय भाषा के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह आज के समय में एक मृत भाषा बन चुकी है क्योंकि इसे रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग नहीं किया जाता। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार को अपने सीमित संसाधनों का उपयोग कहाँ करना चाहिए – एक जीवंत, विकसित और समृद्ध भाषा के उत्थान में या एक ऐसी भाषा पर जो केवल धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों तक ही सीमित रह गई है?
Table of Contents
तमिल भाषा की महत्ता और प्राचीनता
तमिल भाषा लगभग 2000 वर्षों से अधिक पुरानी है और यह एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे शास्त्रीय भाषा (Classical Language) और आधुनिक भाषा दोनों के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह भारत के तमिलनाडु राज्य और श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया सहित कई देशों में व्यापक रूप से बोली जाती है।
संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी तमिल भाषा की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को स्वीकार किया है। इस भाषा में संगम साहित्य जैसे प्राचीन ग्रंथ मौजूद हैं, जो विश्व साहित्य के सबसे पुराने और उत्कृष्ट ग्रंथों में गिने जाते हैं।
संस्कृत – एक मृत भाषा?
संस्कृत को भारत की प्राचीनतम भाषाओं में गिना जाता है और यह वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों की भाषा रही है। हालांकि, यह भाषा अब केवल औपचारिक, धार्मिक और अकादमिक क्षेत्रों में सीमित रह गई है। रोजमर्रा के जीवन में इसका कोई व्यापक उपयोग नहीं है।
संस्कृत को पुनर्जीवित करने के लिए भारत सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन फिर भी यह भाषा आम जनजीवन में अपनी जगह नहीं बना पाई है। इसके विपरीत, तमिल भाषा आज भी जीवंत है और इसे बोलने वालों की संख्या लगातार बनी हुई है।

सरकारी धन का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक
जब सरकार किसी भाषा के उत्थान के लिए धन आवंटित करती है, तो उसे यह देखना चाहिए कि वह भाषा वास्तव में कितनी उपयोगी और प्रभावी है। तमिल जैसी भाषा, जो न केवल प्राचीन है बल्कि आज भी करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है, उसमें निवेश करना व्यावहारिक और लाभकारी होगा। इसके विपरीत, संस्कृत जैसी भाषा, जिसे केवल सीमित समुदायों में ही पढ़ाया और प्रयोग किया जाता है, पर अत्यधिक धन खर्च करना तर्कसंगत नहीं लगता।
तमिल भाषा को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- शिक्षा में निवेश: तमिल भाषा में उच्च शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विस्तार: तमिल भाषा के साहित्य और पाठ्य सामग्रियों को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाए ताकि युवा पीढ़ी इसे आसानी से सीख सके।
- वैश्विक स्तर पर प्रचार: तमिल भाषा और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अधिक प्रचारित किया जाए।
- स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता: सरकारी योजनाओं में संस्कृत से अधिक जीवंत भाषाओं, जैसे तमिल, तेलुगु, मलयालम आदि को प्राथमिकता दी जाए।
निष्कर्ष
भाषा किसी भी समाज की सांस्कृतिक और बौद्धिक पहचान होती है। भारत जैसे बहुभाषी देश में हर भाषा की अपनी महत्ता है, लेकिन नीति-निर्माताओं को यह समझना होगा कि जीवंत भाषाओं में निवेश करना अधिक लाभदायक होगा। तमिल जैसी भाषा, जो हजारों वर्षों से चली आ रही है और आज भी करोड़ों लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है, उसे बढ़ावा देना आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह संस्कृत जैसी मृत भाषा पर अधिक धन खर्च करने के बजाय तमिल जैसी समृद्ध और जीवंत भाषा के विकास के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराए।