महाशिवरात्रि या सही शब्दों में कहा जाए तो शिवजयंती वह दिन है जब वह शाश्वत पवित्र चेतना, इस धरा पर मनुष्य शरीर में अवतरित होती है: राजयोगिनी राधा दीदी
अतुल्य भारत चेतना
संवाददाता
लखनऊ। त्रिभुवनपति भगवान शिव और आदिशक्ति माता पार्वती की आराधना और उपासना को समर्पित पावन महापर्व महाशिवरात्रि के पुनीत अवसर पर बुधवार दिनांक 26 फरवरी 2025 का सायंकाल 06 बजे विपुल खंड स्थित ब्रह्मकुमारीज के गोमती नगर केंद्र पर शिव जयंती समारोह बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम के शुभारंभ में छोटे-छोटे बच्चों के संगीतमय नृत्य प्रस्तुति ने सभी का उमंग बढ़ा दिया।






शिव का अर्थ है कल्याणकारी, वह चेतना जो जन्म और मृत्यु से न्यारी, हमेशा अपने शुद्ध स्वरूप में उपस्थित रहती है और मनुष्यों के कल्याण के लिए मनुष्य शरीर का आधार लेकर, हम मनुष्यों की भाषा में, स्वयं से जोड़ने का रास्ता दिखालाती है। महाशिवरात्रि या सही शब्दों में कहा जाए तो शिवजयंती वह दिन है जब वह शाश्वत पवित्र चेतना, इस धरा पर मनुष्य शरीर में अवतरित होती है। यह विचार गोमती नगर सेंटर इंचार्ज राजयोगिनी राधा दीदी ने शिव जयंती का रहस्य समझाते हुए व्यक्त किए। महाशिवरात्रि के प्रतीकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि शिव के साथ रात्रि शब्द इसलिए जुड़ा हुआ है क्योंकि वह अज्ञान की अंधेरी रात में सृष्टि पर आते हैं अर्थात जब सारा संसार , मनुष्य मात्र माया के वश हो जाता है। सभी आत्माएं पांच विकारों के प्रभाव से मलिन हो जाती हैं, तब पवित्रता और शांति का सत्य धर्म व स्वयं की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते हैं और सिर्फ ऐसे समय पर ही हमें जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व संपूर्ण विश्व में फिर से शांति, पवित्रता, प्रेम का धर्म स्थापित करने के लिए शिव परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं। भगवदगीता का यह श्लोक भी ऐसा ही दर्शाता है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव- ति भारत ।
अभ्युत्थान- मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥४-७॥
परित्राणाय- साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्- ।
धर्मसंस्था- पनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
अर्थात जब-जब इस सृष्टि धर्म की अति ग्लानि होने लगती है, तब मेरा अवतरण संभव हो जाता है। अवश्य ही यह वर्तमान समय ही है, जब हम अपने चारों ओर दृष्टि डालने पर धर्म की अति ग्लानि ही दिखाई देती है। चारों ओर हिंसा, भय, निराशा, अत्याचार, भ्रष्टाचार, क्रोध का अंधकार फैला हुआ और मनुष्य के लिए क्या सही है, क्या गलत यह तय करना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे समय पर परमात्मा हमें स्वयं की कमी कमजोरीयों को दूर कर, पूरे समाज में आत्म जागृति का प्रकाश फैलाने की प्रेरणा देते हैं और इसकी शुरुआत बाह्य समाज से नहीं अपितु स्वयं से , अपने परिवार से करनी है।






शिव-लिंग परमात्मा शिव के ज्योति रूप को दर्शाता है। परमात्मा का कोई मनुष्य रूप नहीं है और ना ही उसके पास कोई शारीरिक आकार है। भगवान शिव एक सूक्ष्म, पवित्र व स्वदीप्तिमान दिव्य ज्योति पुंज हैं। इस ज्योति को एक अंडाकार रूप से दर्शाया गया है। इसीलिए उन्हें ज्योर्तिलिंग के रूप में दिखाया गया है, अर्थात “ज्योति का प्रतीक”। वो सत्य है, कल्याणकारी हैं और सबसे सुंदर आत्मा है, तभी उन्हें सत्यम-शिवम्-सुंदरम कहा जाता है। वो सत-चित-आनंद स्वरूप भी है।
शिव पूजा में हम अक-धतूरा आदि चढ़ते हैं अर्थात् अपनी कमियों कमजोरी को योग द्वारा परमात्मा शिव को अर्पण कर ज्ञान प्रकाश प्राप्त करते हैं।
इन सब आध्यात्मिक साधनाओं के लिए शक्ति की जरूरत होती है जो हम राजयोग के माध्यम से अर्जित करते हैं।
अंत में राजयोगिनी स्वर्णलता दीदी द्वारा राजयोग का अभ्यास कराया गया। ज्ञातव्य हो कि ब्रह्माकुमारीज राजयोग प्रशिक्षण केंद्रों पर राजयोग का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित भक्तजनों ने बड़े उत्साह से शिव जयंती समारोह मनाया और सत्संग अर्थात सत् के संग का लाभ लिया। स्वर साम्राज्ञी कोकिला रंजन एवं भूतपूर्व मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन आलोक रंजन, आईoएमoआरoटीo चेयरमैन डीoआरo बंसल, डायरेक्टर जनरल टेक्निकल एजुकेशन, उप्र सरकार श्री अविनाश जी, बीके रविन्द्र एवं सुरजीत भाई विशिष्ट अतिथियों के रूप में उपस्थित थे। इस अभूतपूर्व आयोजन के दौरान भारी संख्या में बीके भाई बहन तथा अन्य तमाम आध्यात्मिक साधक जन उपस्थित रहे सभी ने ब्रह्माकुमारीज केंद्र पर महाशिवरात्रि महोत्सव के पावन अवसर सभी आयोजित शिव जयंती समारोह में उपस्थित होकर शिव जयंती उत्सव का आनंद लिया। प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
|| ओम् शान्ति ||