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जयगुरुदेव बाबा उमाकान्त जी ने पुराने प्रसंग से समझाया, वक़्त गुरु की पहचान, उनका महत्त्व, और उनका हाथ पकड़ने पर कभी न छोड़ना

By News Desk Nov 19, 2024
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भटके को रास्ता, भूखे को रोटी, प्यासे को पानी पिलाने से अधिक पुण्य है नामदान दिलाना, मौत की पीड़ा, नर्कों चौरासी से बचाना

अतुल्य भारत चेतना
अनिल कुमार गुप्ता

सतसंग मंच से जो कहूँगा वो बात कभी गलत नहीं होगी, ऐसी घोषणा करने वाले निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा सतसंग मंच से ही सार्वजनिक रूप से घोषित उनके सम्पूर्ण उत्तराधिकारी, उनकी मौज अब जिस रूप में जीवों की संभाल करने की हो गयी तो अपनी बुद्धि से वाद-विवाद करने, अलग-अलग अर्थ निकालने से नहीं बल्कि गुरु की मौज के अनुसार रहने से ही दया मिलती है, स्वामी जी ने बहुतों को अंदर में, साधना में, स्वपन में और भी बहुत तरीकों से अपने नये रूप की पहचान करा दी है, अब भी सच्चे ह्रदय भाव श्रद्धा प्रेम से अर्जी लगाओ तो आपको भी पहचान करा देंगे, ऐसे गुरु जी महाराज के तदरूप इस समय के वक़्त गुरु, सर्व समर्थ, सर्वत्र व्यापी, उज्जैन वाले परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 16 नवम्बर 2024 को प्रात: रैपुरा, पन्ना जिला में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में अपने अगले प्रस्तावित सतसंग व नामदान कार्यक्रमों के बारे में बताया कि सतना, रीवा में कार्यक्रम करके लौटकर के नागौर में रुकूंगा। फिर गुनौर तहसील, पन्ना में 20 नवम्बर को दोपहर 12 बजे से सतसंग व नामदान कार्यक्रम प्रस्तावित है। अगर कोई नामदान (लेने) के इच्छुक हैं, उन्हें समझा करके सतसंग में ले आना। नामदान दिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य का काम होता है। जैसे भटके हुए को रास्ता, भूखे को रोटी खिला दो, दुखी का दुःख दूर कर दो तो कहते हैं कि पुण्य का काम होता है, ऐसे ही नाम दान दिलाना बहुत बड़ा पुण्य का काम होता है।

ठाकुर साहब ने कैसे पहचाना वक़्त गुरु को

हमारे गांव के पास एक बुजुर्ग ठाकुर साहब रहते थे। उस समय जब मैंने नामदान लिया तो मेरी उम्र बहुत कम थी। हमको नाम दान लिए हुए 50 साल से ऊपर हो गया। मैं उनके उधर से निकलता तो सलाम कर लेते थे। उनको खबर लगी (कि महाराज जी) किसी बाबा के पास गये थे, प्रचार वगैरह होता रहता था। तो मुझे बुलाया, पूछा क्या देखा? तो हमने सब बताया। वो हमको बुलाने लग गए। हमसे प्रेम हो गया। उनसे पूछा- चाचा (सतसंग कार्यक्रम में) चलोगे? बोले हां चलेंगे। फिर ऐसा सयोग बना, भंडारा का कार्यक्रम था। हमने कहा- चाचा चलो, भंडारा का कार्यक्रम है। बोले वहां ठंडी तो बहुत है। हमने कहा बिस्तर हम ले चलेंगे। तो उन्होंने पूछा कैसे चलोगे? कहा- बस से चलेंगे। तो बस में बैठकर गए। रात को बस देर से पहुंची। जहां जगह मिली पड़ गए। सुबह-सुबह गुरु महाराज निकले तो सीधे मंच के ऊपर चढ़ गए। सब लोग दौड़े की स्वामी जी मंच पर आ गए, खड़े हो गए। हम भी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। वह भी ऐसे गुरु महाराज को देखते रहे। उनकी तरफ स्वामी जी महाराज देखते रहे, मुस्कुराते रहे, उसके बाद उतर गए। अब वो हमारा पैर छूने लग गए, अरे भैया! हमको आपने सुबह-सुबह भगवान से मिलवा दिया, भगवान का दर्शन करवा दिया।

जीवात्मा को वक्त के महापुरुष की पहचान हो जाती है

समझो, उनको ऐसे क्या पहचान आंखों से? लेकिन जो यह जीवात्मा है, वो उनको पहचानी। जैसे बड़ा चुंबक, छोटा चुंबक को खींच लेता है। उनकी जीवात्मा पहचानी थी कि यह वक्त के भगवान हैं। जब उन्होंने नामदान लिया तब कहा ये तो सब नाम रामायण में लिखे हुए हैं, यही चीज तो समझ में नहीं आ रही थी। बोले, असली चीज तो यही है, इसी को पकड़ लेना चाहिए। वो भजन-ध्यान करने लग गए। तीर्थों में जाना, पूजा-पाठ तो पहले ही सब करते थे, अब सब समझ गए। बुजुर्ग थे, कुछ दिन के बाद चले गए, गुरु महाराज ने संभाल किया होगा, करते ही हैं। गुरु संभाल करते ही करते हैं। जिनको नामदान देते हैं, जिनका हाथ पकड़ते हैं, छोड़ते नहीं है। जैसे कोई शादी करके लड़की से जिंदगी भर साथ निभाते हैं, ऐसे ही वक्त के सतगुरु भी साथ निभाते हैं।

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