अतुल्य भारत चेतना
मैं शत् बार नमन करता हूं
इन विकास के नारों को ।
अच्छे दिन की गारंटी देते
टीवी अखबारो को ।
चौबिस घण्टे श्रम करता है
दिल्ली का सिंहासन जब ।
तब ऐसा जीवन मिल पाता है
निर्धन परिवारों को ।
बिना दवाई के
जालिम बीमारी है ‘
आमदनी से ज्यादा
कर्जे दारी है ।
मेहनत करके बचपन
रोटी जोड़ रहा है।
बीमारी से पचपन
सांसे तोड़ रहा है।
खुशहाली है दर्ज
फाइलों मे लेकिन ।
निर्धन के घर मे
फैली लाचारी है ।
गारन्टी गारन्टी रटती
शर्म नही सरकारों को ।
चौबिस घन्टे श्रम करता है ‘
दिल्ली का सिहांसन जब ।
तब ऐसा जीवन मिल पाता है ‘
निर्धन परिवारों को ।
रोज सवेरे जिजीविषा
जग जाती है।
और शाम को आशाएं
मिट जाती हैं ।
जीना – मरना मरना -जीना
जीवन की परिभाषा है।
सपने वपने सब बेकार की बातें हैं
बस मिट जाए भूंख यही
अभिलाषा है ।
पाते हैं दुत्कार
ठोकते पर सलाम दरवारों को ।
मै सतवार नमन करता हूं
इन विकास के नारों को ।
अच्छे दिनकी गारन्टी देते ,
टीवी अखबारों को ।
चौबिस घण्टे श्रम करता है ‘
दिल्ली का सिहांसन जब ।
तब ऐसा जीवन मिल पाता है
निर्धन परिवारों को।
कई सांसद मोल खरीदे ‘
कई विधायक तोडें हैं ।
करी शत्रुओं से गलबहियां ।
कई दलों को जोडें हैं ।
और उठाया है रेहन पर ‘
कई बड़े अखबारों को ।
चौबिस घन्टे श्रम करता है ‘
दिल्ली का सिहासन जब ‘
तब ऐसा जीवन मिल पाता है
निर्धन परिवारों को ।
-महेश मिश्र (मानव )
शिक्षक एवं साहित्यकार
जनपद- श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश)