अतुल्य भारत चेतना
अमिता तिवारी (सह-संपादक)
महिलाएं न केवल अपने परिवार की धुरी होती हैं बल्कि वे समाज और राष्ट्र की भी धुरी होती हैं । जैसे वे एक सुखी, सुंसस्कृत परिवार बनाने में दक्ष होती हैं वैसे ही वो एक अच्छे समाज और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं । 30 के दशक में ऐसी सोच रखने वाली एक साधारण सी महिला ने अपने मन में जब ये संकल्प लिया तो कौन जानता था कि उनका संकल्प मूर्त रूप ले लेगा और उनके विचारों का एक छोटा सा बीज विशाल वटवृक्ष बन कर देश दुनिया में विस्तार कर लेगा । एक साधारण सी गृहिणी ने अपने दृढ़ संकल्प, अटल लक्ष्य , समर्पण और त्याग से एक ऐसा संगठन खड़ा कर दिया जो आज दुनिया का सबसे बड़ा महिला संगठन है। जिसकी जड़ें भारत के बड़े महानगरों से लेकर दूरदराज के दुर्गम इलाकों और गांवों तक पहुंच चुकी हैं । सात समंदर पार करके विदेशों में भी इस संगठन का नाम काम और ख्याति है। आज इस संगठन में लाखों महिलाएं चुपचाप समाज और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं ।

कौन जानता था सांसारिक परिभाषा में एक साधारण महिला जो दसवीं तक की पढ़ाई भी नहीं कर पायी और जो मात्र 27 वर्ष की आयु में विधवा हो गयी वो एक ऐसा अनुपम कार्य कर जाएगी जिससे भारत की आने वाली पीढ़ियां उन्हें सदा सदा के लिए याद रखेंगी। और महान महिला के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएंगीं । आने वाली पीढ़ियां जिनका अनुसरण करेंगी और अपना आदर्श मानेंगी । ऐसी असाधरण महिला थीं श्रीमति लक्ष्मी बाई केलकर । जिन्होनें 1936 में एक ऐसे महिला संगठन की नींव रखी जो नारी शक्ति का प्रतीक बन गया । राष्ट्र सेविका समिति भले ही नारी विमर्श के पश्चिमी पैमाने पर खरा ना उतरता हो ये नारी शक्ति की प्राचीन भारतीय परंपरा को सुदृढ़ करता है । जो नारी को पुरूष की प्रतिस्पर्धक नहीं बल्कि परिपूरक मानता है । जिस तरह परिवार में पत्नी और पति एक दूसरे के पूरक हैं , उसी तरह स्त्री पुरूष समाज में एक दूसरे के पूरक हैं । दोनों परस्पर सहयोग से समाज और राष्ट्र का निर्माण करते हैं । लक्ष्मी बाई केलकर को महिलाओं का संगठन बनाने की प्ररेणा अपने ही पुत्र से मिली जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वयं सेवक था । राष्ट्रीय सव्यं सेवक संघ की शाखा में जाने के बाद उनके पुत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ । वे ज्यादा अनुशासित, आज्ञाकारी और राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो गए। घर में राष्ट्रभक्ति के गीत गूंजने लगे और हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान जैसे शब्द बहुतायत में प्रयोग होने लगे। लक्ष्मी सोचने लगीं कि संघ शाखाओं को पुरुषों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। जरूरी है कि सभी महिलाओं के हृदय में भी राष्ट्र, हिंदू संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रेम उमड़ना चाहिए। महिलाएं भी भारतीय समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इसलिए उन्हें एक बैनर के तले लाने की जरूरत है। उन्हें लगा यदि ऐसा ही कोई संगठन महिलाओं के लिए भी बने तो समाज को नयी दिशा दशा दी जा सकती है ।
कहते हैं जब आप दिल से कोई कामना करते हैं व पूरी भी हो जाती है । एक दिन उनके बेटे ने कहा कि आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक डॉ केशव राम बलिराम हेडगेवार शहर में आ रहे हैं तो लक्ष्मी बाई केलकर भी अपने बेटे के साथ उन्हें मिलने गयीं और अपने मन की इच्छा उनके सामने रखी । डॉ हेडगवार ने उनकी बातों को गंभीरता से सुना और फिर दोनों के बीच नागपुर और वर्धा में कई बैठकें हुईं। हेडगेवार जी लक्ष्मी केलकर के लिए बड़े भाई और पथ-प्रदर्शक बन गए थे। लक्ष्मी बाई केलकर ने उनके मस्तिष्क में यह विचार डाल दिया था कि बिना महिलाओं को सशक्त किए समाज कभी सही प्रगति नहीं कर सकता और देश का विकास नहीं हो सकता। डॉ. हेडगेवार ने लक्ष्मी बाई केलकर से कहा कि वे उनकी बातों से सहमत हैं। महिलाओं में सही मूल्यों के विकास कर उन्हें देश की सेवा के लिए तैयार करने के लिए प्रशिक्षण देना बहुत आवश्यक है। लेकिन उन्होंने कहा कि महिलाओं का संगठन पुरुषों के संगठन से अलग होना चाहिए। उनके संगठन की गतिविधियां भी पुरुषों से अलग तरह की होनी चाहिए।
डॉ. हेडगेवार ने लक्ष्मी केलकर को समझाया कि उनका काम राष्ट्रीय महत्व का होगा, इसलिए उन्हें पूरी निष्ठा और समर्पण से काम करना होगा। यह ऐसा काम होगा, जिसके लिए पूरे राष्ट्र और देश के लोगों को उन पर गर्व होगा।
और अंतत वो दिन आ ही गया जिस दिन की लक्ष्मी बाई केलकर बरसों से कल्पना कर रही थी । वर्ष 1936 की विजया दशमी एक नयी इतिहास रचने जा रही थी । भारत में महिलाओं के लिए यह दिन नई प्रेरणा का दिन साबित होने जा रहा था। उन दिनों महिलाएं घरों की चारदीवारी में कैद रहती थीं। लेकिन 25 अक्तूबर 1936 को वर्धा में लक्ष्मी बाई केलकर के नेतृत्व में बड़ी संख्या में महिलाएं समिति का कामकाज करने के लिए बहुत पुरानी परंपरा तोड़कर घरों से निकलीं ये भारत के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी। समिति ने महिलाओं को अनुशासित सेविका बनाने के लिए प्रशिक्षण मुहिम शुरू की। एक शाखा से आरंभ हुई राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएं बढ़ती गयी । स्वतंत्रता आंदोलन के दिन भी थे । समिति का विस्तार सिंध, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब तक हो गया। वर्धा के अलावा शिक्षा वर्ग पुणे और नागपुर में भी हुए। वर्ष 1943-44 के दौरान कराची में भी शिक्षा वर्ग आयोजित किया गया।
लक्ष्मी बाई केलकर में नेतृत्व की अपार प्रतिभाएं थीं । सभी महिलाओं ने उन्हें प्यार से मौसी जी पुकारना आरंभ कर दिया । प्रारंभिक सफलताओं के बाद मौसीजी ने सोचा कि समिति के काम के आयाम बढ़ाए जाएं। बैठकें नियमित हो रही थीं। शिक्षा वर्ग लगातार लगाए जा रहे थे। उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए शिशु मंदिर, घरेलू स्तर पर कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उद्योग मंदिर स्थापित करने की योजनाएं बनाईं। शिशु और उद्योग मंदिरों का संचालन सेविकाओं द्वारा किया जाना था। इन योजनाओं का विभिन्न स्तरों पर स्वागत हुआ।
राष्ट्र सेविका समिति ने दिन दुनी रात चौगुनी उन्नति और विस्तार किया । सामाजिक ,सांस्कृतिक , आर्थिक , नैतिक , देश भक्ति की भावना , देश सेवा , राष्ट्रीय आपदाओं के समय योगदान सीमा पर जा कर देश के रक्षकों को मान सम्मान देना समिति चारों दिशाओं तो क्या दशों दिशाओं में अपना विस्तार करती गयी । मौसी जी ने जो मज़बूत नींव रखी उस पर एक सुदृढ़ राष्ट्रीय संगठन खड़ा हुआ । ये वो संगठन है जो परिवार ,समाज और देश के हित के बारे में सोचता है । पश्चिमी और वामपंथी संगठनों की उस सोच से बिल्कुल अलग जो नारी को पुरूषों से बागवत कर अपनी अलग दुनिया बनाने को कहते हैं । ये संगठन मातृत्व कृतित्व और नेतृतव के गुणों और स्त्री के नैसर्गिक गुणों के साथ समाज को योगदान दे रहा है । आने वाली पीढियां लक्ष्मी बाई केलकर को अपना आदर्श मानेगी । क्योंकि जब तक हम अपनी जड़ों से नहीं जुड़े रहेंगें तब तक फले फूलेंगे नहीं । मौसी जी ने इसी सिद्धांत को अपनाया था कि अपनी जड़ों से जुड़ कर आगे बढ़ो। राष्ट्र सेविका समिति उसी सिद्दांत पर चलते हुए आज दिग दिगंत में ख्याति पा रही है।
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