अतुल्य भारत चेतना
अशोक सोनी
कैसरगंज/बहराइच। वट सावित्री व्रत पर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा की।इस बूढे बरगद के पेड़ मे तमाम धार्मिक के साथ-साथ चिकित्सकीय गुण का रहस्य भी छिपे हैं।मान्यता है कि वट वृक्ष (बरगद) की जड़ें ब्रह्म, छाल विष्णु और शाखाएं शिव हैं। लक्ष्मी जी भी इस वृक्ष पर आती हैं।

अपने आप में आस्था का असीम संसार समेटे वट वृक्ष वृहद औषधीय गुणों वाला भी है। इसकी जड़ें, पत्ते, छाल और रस सभी गुणकारी हैं। कमर और जोड़ों के दर्द, मधुमेह और मुंह संबंधी तमाम रोगों में रामबाण औषधि है। आयुर्वेद में इसे दैवीय उपहार के रूप में माना गया है। बरगद की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं। पत्तिया हवा को शुद्ध करती हैं। बरगद की तासीर ठंडी होती है,जो कफ और पित्त की समस्या को दूर करता है। धार्मिक के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में भी इसका अहम स्थान है। वट सावित्री व्रत पर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा भी की।

औषधीय महत्व पर भी एक नजर
- तिल के तेल के साथ ताजा बरगद के पत्तों का लेप फोड़े आदि संक्त्रमण से निजात में फायदा करता है।
- पत्तों का दूधिया रस एक अच्छा एंटी इंफ्लेमेटरी (जलन में राहत) है। गठिया, जोड़ों का दर्द और सूजन में राहत पहुंचाता है।
- पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप करने से घाव जल्दी सूख जाते हैं।
- पत्तियों का पेस्ट चेहरे पर होने वाले लाल चकत्तों से छुटकारा दिलाता है।
- पत्तियों को पीसकर तैयार लेप से मालिश करने पर खुजली आदि की समस्या दूर होती है।
जड़ों में भी छिपा है औषधि गुण - बरगद की जड़ों में सबसे अधिक मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं।चेहरे की झुर्रियों को दूर करने के लिए भी बरगद की जड़ों का प्रयोग होता है।
- इसके एंटीबैक्टीरियल और एस्टिजेंट गुण दातों और मसूड़ों संबंधी परेशानियों से राहत दिलाती है।
- बरगद की कोमल जड़ों को चबाने से मुंह की सफाई होती है। सासों की बदबू से भी निजात मिलती है।
- इसके दातून से पायरिया से भी बचा जा सकता है।
- बरगद की जड़, जटामासी, गिलोय और तिल का तेल मिलाकर धूप में रखें। जब ये सूख जाए तब बचे हुए तेल को छान लें। इस तेल की मालिश बाल झड़ने की समस्या में राहत के लिए कारगर है।

छाल में छिपे है तमाम चिकित्सकीय गुण
- बरगद की छाल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इसका काढ़ा बनाकर पीने से इम्यूनिटी बढ़ती है।
- कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में भी कारगर है।
- बरगद की छाल का काढ़ा मधुमेह के इलाज के लिए सहायक है। जाने क्या है बरगद के दूधिया रस
- बरगद के पेड़ का दूधिया रस फटी एड़ियों को मुलायम बनाने के साथ ही दरारें भरने में भी कारगर है।
- दात में कीड़ा लगने पर प्रयोग करते हैं।
- नेत्र संबंधी विकारों में भी राहत पहुंचाता है।शोध भी करता है प्रमाणित।
भूकम्प आपदा का वैज्ञानिक आधार भी कम नहीं
यही नहीं ‘भूकंप आपदा का वैज्ञानिक आधार एवं आपातिक प्रबंधन पीपल, बरगद, पाकड़ वृक्षों के रोपण द्वारा’ है।ये वृक्ष भूकंप आपदा के रक्षा कवच के रूप में कारगर हैं। ये अपने विशिष्ट जल धारण क्षमता, वाष्पोत्सर्जन, खनिज लवणों के अवशोषण के गुणों द्वारा जल को गुरुत्वीय क्षेत्र से जाने से रोकते हैं। वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल के अनावश्यक दबाव को कम करने समेत तमाम गुणों के कारण ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप के कारकों का शमन होता है। इन वृक्षों की जड़ें पृथ्वी की प्लेटों को गतिशील होने से रोकने का भी काम करती हैं पौराणिक ग्रंथों का आकलन करके यह शोधपत्र तैयार किया था। इसमें तीन महीने का समय लगा था।

लग चुकी है पेड़ के गुणों पर मुहर
कैसरगंज।आयुर्वेद एवम यूनानी के रिटायर्ड चिकित्सक डा.हरिद्वार सिंह ने बताया यह भी बताया कि ऑक्सीजन देने वाला यह पेड़ है। इसमें मोटापे और पेट संबंधी तमाम बीमारियों से निजात दिलाने वाले गुण भी हैं। त्वचा संबंधी रोगों से राहत में यह अच्छा काम करता है। मधुमेह की रोकथाम संबंधी तमाम दवाएं इससे बनाई जाती हैं। कि बरगद के रस और फल चोट, घावों और अल्सर के लिए बाहरी रूप से लागू दवाओं के रूप में उपयोगी होते हैं। इससे जोड़ें के दर्द के रोगियों में सुधार होता है। सूजन में भी राहत मिलती है। गठिया के दर्द से राहत के लिए इसके लेटेक्स (दूध) को बाहरी रूप से प्रयोग कर सकते है।
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