अतुल्य भारत चेतना
मोहम्मद शरीफ कुरैशी
रतलाम। क्या आप कल्पना कर सकते हैं एक सांसद जो 8बार सांसद बना हो, पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहा हो, जिसने किसी मुख्यमंत्री को विधानसभा में हराकर भारत में इस पहली घटना का रिकॉर्ड बनाया हो, जिसकी ईमानदारी के किस्से समर्थक ही नहीं विरोधी भी सुनाते हों। वह व्यक्ति अपनी सरकार में मंत्री नहीं बन पाया और उसने कभी कोई मलाल नहीं पाला। न तो पार्टी के खिलाफ एक शब्द कहा न ही अपने समर्थकों को कहने दिया।

1962 में जब आप पहली बार विधानसभा पहुंचे थे तो आपके सामने हारने वाले प्रत्याशी मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कैलाशनाथ काटजू थे। वही काटजू साहब जो बाद में तुरन्त देश के गृहमंत्री बने। इस हार को नेहरू जी ने अपनी व्यक्तिगत क्षति माना, लेकिन डॉ पांडेय से वे इतने प्रभावित थे कि उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव तक भिजवा दिया, और यह बस यहीं तक नहीं था आगे 1971 में जब पहली बार डॉ पांडेय सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे और एक मुद्दे पर बोलकर बैठे तो अगले दिन तात्कालिक प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने उन्हें मिलने बुलाया और कहा कि आपकी ज़रूरत कांग्रेस को है, मेरे पिताजी का संदेश आपने नहीं माना लेकिन अब आपको कांग्रेस में आना चाहिए।
लेकिन वे डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय थे, अपने सिद्धांतों और विचारों पर अडिग रहने वाले वे वहीं रहे जहाँ उन्होंने रहने का संकल्प लिया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भारतीय जनसंघ और फिर जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी, अंतिम सांस तक उन्होंने अपने राजनैतिक हित या महत्वकांक्षा के लिए न तो पार्टी को कभी दगा किया न आँख दिखाई।
उन्हें कभी इस बात का गुमान नहीं रहा कि देश का एक बिरला उदाहरण उनके नाम था, एक ही लोकसभा क्षेत्र से एक ही दल से लगातार 11 चुनाव लड़ना और उसमें से 8 में जितना।
ख़ैर उन्हें तो अटल जी की सरकार में मंत्री न बन पाने का कोई मलाल नहीं था, जबकि उस समय वे 7वीं बार सांसद बने थे। उल्टा जो कोई उनके पास सिफारिश करने आता वे स्वयं अटल जी के पास उसे लेजाकर उसको मंत्री बनवाने की सिफारिश करने लगते। ऐसा ही हुआ उनके बेटे के साथ। उनके पुत्र राजेन्द्र पाण्डे जावरा विधानसभा से 2013 में दुबारा निर्वाचित होकर आये। लगभग सभी वरिष्ठ भाजपा नेताओं के परिवार के सदस्य जो विधायक थे उन्हें मंत्री बनाया गया, लेकिन राजेन्द्र पाण्डे को मौका नहीं मिला। इसपर जब कोई उनके पिता डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय के पास अपने पुत्र को मंत्री बनवाने के लिए कहता तो कहते मध्यप्रदेश के किसी भी दूसरे विधायक के लिए बोल दूँगा लेकिन स्वयं के बेटे के लिए नहीं, मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा और अपने परिवार के लिए भी नहीं मांगूंगा।
तमाम उतार चढ़ावों में अपने विचार के लिए अनामिकता का भाव लिए, यश अपयश के बंधनों से दूर होकर स्वयं का जीवन होम कर दिया। मुझे वह दृश्य याद आता है जब केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार 2014 में बनी थी। डॉ पांडे की आंखे खुशी के आंसुओं से भरी थीं, घर पहुंचे समर्थकों को अपने हाथ से मिठाई खिलाते हुए वे कह रहे थे इस दिन के लिए ही जिंदगी गुज़ार दी अब लगता है जैसे जन्मों का स्वप्न पूरा हुआ।
आज की राजनीति को देख ऐसे व्यक्तियों की हम कल्पना भी शायद न कर सकें। और शायद अटल जी ने इसलिए ही उन्हें मालवा का गाँधी कहा।
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