अतुल्य भारत चेतना
विशेष रिपोर्ट
अमिता तिवारी ‘प्रेरणा’
खाद्यान्न के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डाॅ. एम.एस. स्वामीनाथन का निधन देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। कृतज्ञ राष्ट्र उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनका निधन 28 सितंबर को 98 साल की उम्र में लंबी बीमारी के कारण हुआ।

स्वामीनाथन के निधन की खबर सुनते ही पीएम मोदी भावुक हो गए। पीएम ने कहा कि उन्होंने हमेशा देश के लिए काम किया। पीएम ने कहा कि स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व काम करते हुए हजारों लोगों की जिंदगी संवारी।

स्वामीनाथन को ‘Father of Green revolution’ भी कहा जाता है। स्वामीनाथन एक जाने माने कृषि वैज्ञानिक तथा पादप आनुवंशिकीविद् थे। स्वामीनाथन ने गेंहू और धान की अच्छी पैदावार होने वाली किस्मों को विकसित करने में अपनी अहम भूमिका निभाई। इस क्षेत्र में किए गए उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए राष्ट्र सदैव उनका ऋणी रहेगा। भारत में हरित क्रांति के मुख्य प्रणेता रहे स्वामीनाथन ने 1960 के दशक में भारत को अकाल जैसी स्थितियों से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। स्वामीनाथन उस समय भारत द्वारा खाद्यान्न आयात करने के पक्षधर नहीं थे जब भारत का सत्तर प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर था और फिरभी आगे चलकर देश में सूखा और अकाल जैसे हालात बन रहे थे।

भारत गाँवों का देश है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है। इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से सम्बंधित जनता भी भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताती रही। स्वामीनाथन ही वह व्यक्ति हैं जिन्होने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए। ‘हरित क्रांति’ कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और धान के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए थे।

इस क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से बचाकर 25 वर्ष से कम समय में खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया था। स्वामीनाथन का लक्ष्य भारत को भूख मुक्त बनाना था।स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने “आर्थिक पारिस्थितिकी का जनक” कहा है। स्वामीनाथन ने साइटोजेनेटिक्स, आयनीकरण विकिरण और रेडियो संवेदनशीलता जैसे क्षेत्रों में आलू, गेहूं और धान से संबंधित बुनियादी अनुसंधान में अपना योगदान दिया। स्वामीनाथन ने दुनिया की पहली अधिक उपज देने वाली बासमती के विकास में भी भूमिका निभाई। उस समय से भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को ‘कृषि क्रांति आंदोलन’ के वैज्ञानिक नेता के रूप में ख्याति दिलाई। उनके द्वारा सदाबाहर क्रांति की ओर उन्मुख अवलंबनीय कृषि की वकालत ने उन्हें अवलंबनीय खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता का दर्जा दिलाया। स्वामीनाथन ने एक शब्द का निर्माण किया वह था ‘सदाबहार क्रांति’, जो हरित क्रांति के स्थायी प्रभाव पर आधारित है। इसका उद्देश्य मानव जाति के लिए आवश्यक टिकाऊ उत्पादकता में निरंतर वृद्धि करना है।

उन्होंने इसे “निरंतर उत्पादकता” के रूप में वर्णित किया है। इसलिए स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का अगुआ” माना जाता है। भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है। अपने क्षेत्र में उनको अनेक पुरस्कार मिलें जैसे- 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘मैग्सेसे पुरस्कार’, 1986 में ‘अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार’, 1987 में पहला ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’, 1991 में अमेरिका में ‘टाइलर पुरस्कार’, 1994 में पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का ‘होंडा पुरस्कार’, 1997 में फ़्राँस का ‘ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल’ (कृषि में योग्यताक्रम), 1998 में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का ‘हेनरी शॉ पदक’, 1999 में ‘वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार’, 1999 में ही ‘यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक’ से सम्मानित तथा ‘भारत सरकार द्वारा उनको ‘पद्मश्री’ (1967), ‘पद्मभूषण’ (1972) और ‘पद्मविभूषण’ (1989) से सम्मानित किया था।


विभिन्न पुरस्कारों और सम्मानों के साथ प्राप्त धनराशि से एम. एस. स्वामीनाथन ने वर्ष 1990 के दशक में ‘अवलंबनीय कृषि तथा ग्रामीण विकास’ के लिए चेन्नई में एक शोध केंद्र की स्थापना की। ‘एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ का मुख्य उदेश्य भारतीय गांवों में प्रकृति तथा महिलाओं के अनुकूल प्रौद्योगिकी के विकास और प्रसार पर आधारित रोजग़ार उपलब्ध कराने वाली आर्थिक विकास की रणनीति को बढ़ावा देना है। 1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।