अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
बिड़ौली।सातवीं मोहर्रम के अवसर पर बिड़ौली में शिया समुदाय द्वारा इमाम बारगाह से नवासे रसूल हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके भाई हजरत अब्बास अलमदार की शहादत की याद में एक मातमी जुलूस निकाला गया। यह जुलूस गमगीन माहौल में इमाम बारगाह से शुरू होकर गलियों से गुजरता हुआ पुनः इमाम बारगाह पर समाप्त हुआ।
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जुलूस का आयोजन
जुलूस का आयोजन गुरुवार को इमाम बारगाह से किया गया, जिसमें अलम, ताबूत, और जुलजना बरामद किए गए। सभी सोगवारों ने इनकी जियारत की। जुलूस से पूर्व एक मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें मौलाना जीशान आरिफ (जैदपुर, बाराबंकी) ने खिताब किया। मौलाना ने अपने बयान में हजरत अब्बास की शहादत का जिक्र करते हुए कहा, “हजरत अब्बास ने कर्बला के मैदान में अपनी जान कुर्बान कर यह सिखाया कि हमें उनकी सीरत पर चलकर अच्छाइयों को अपनाना और बुराइयों से दूर रहना चाहिए।” उन्होंने भाईचारे का संदेश देते हुए कहा कि कर्बला के शहीदों ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर की, जो मानवता के लिए एक अमर प्रेरणा है।

नौहाख्वानी और मातम
जुलूस में सैय्यद वसी हैदर, गुड्डू मियां, अली रजा, शौकीन हुसैन, और हाशिम शाह ने मार्मिक नौहे पढ़े, जिन्हें सुनकर सोगवारों की आंखें नम हो गईं। शिया सोगवारों ने जुलूस के दौरान खाना, चाय, और शरबत का वितरण भी किया। यह जुलूस हर साल कर्बला के शहीदों की याद में निकाला जाता है, जो सन 680 (61 हिजरी) में यजीद की सेना द्वारा हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों पर किए गए जुल्मों को याद दिलाता है।
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जुलूस का मार्ग
जुलूस इमाम बारगाह से शुरू होकर तस्लीम शाह, जिंदा शाह, जाकिर शाह, कम्बर, शौकीन शाह, और हसन अली के स्थानों से होकर गुजरा। गलियों में “या हुसैन, या अब्बास” की सदाएं गूंजती रहीं। जुलूस देर शाम वापस इमाम बारगाह पहुंचकर समाप्त हुआ। इस दौरान सोगवारों ने मातम और नौहाख्वानी के माध्यम से कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

पुलिस व्यवस्था और सहभागिता
जुलूस के दौरान शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए पुलिस बल तैनात रहा। जुलूस में सैय्यद वसी हैदर, शौकीन हुसैन, हाशिम शाह, नफीश शाह, सैय्यद कमर अब्बास, डॉ. बाकर, हुसैन अली, बाकिर शाह, हुसैन अब्बास सहित कई अन्य सोगवार शामिल रहे। मौलाना जीशान आरिफ के बयान ने सोगवारों को भावुक कर दिया, और कई लोग कर्बला की दास्तां सुनकर रो पड़े।
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कर्बला की शहादत का महत्व
मौलाना जीशान आरिफ ने अपने खिताब में कर्बला की शहादत के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने यजीद की जुल्मी हुकूमत के खिलाफ खड़े होकर सच्चाई और न्याय का रास्ता चुना। सातवीं मोहर्रम को हजरत अब्बास की शहादत विशेष रूप से याद की जाती है, जिन्होंने पानी लाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। यह बलिदान भाईचारे, सत्य, और मानवता की रक्षा का प्रतीक है।

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बिड़ौली में सातवीं मोहर्रम का यह मातमी जुलूस कर्बला के शहीदों की याद में शिया समुदाय की गहरी अकीदत का प्रतीक रहा। जुलूस और मजलिस के माध्यम से सोगवारों ने न केवल हजरत इमाम हुसैन और हजरत अब्बास की शहादत को याद किया, बल्कि उनके बलिदान से प्रेरणा लेकर समाज में भाईचारा और सच्चाई को बढ़ावा देने का संकल्प भी दोहराया। यह आयोजन बिड़ौली में शिया समुदाय की एकता और धार्मिक भावना का शानदार प्रदर्शन रहा।