अतुल्य भारत चेतना
रईस
बहराइच। आम आदमी पार्टी (आप) की उत्तर प्रदेश इकाई ने उत्तर प्रदेश सरकार के 16 जून 2025 के उस शासनादेश के खिलाफ, जिसमें कम छात्र संख्या वाले परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों को बंद कर अन्य स्कूलों में मर्ज करने का निर्णय लिया गया है, कड़ा विरोध दर्ज किया। इस संबंध में आप ने महामहिम राज्यपाल को संबोधित एक ज्ञापन बहराइच के सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा, जिसमें इस आदेश पर तत्काल रोक लगाने और सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार की मांग की गई। आप ने चेतावनी दी कि यदि यह आदेश वापस नहीं लिया गया, तो बच्चों के भविष्य और सरकारी स्कूलों को बचाने के लिए पूरे प्रदेश में व्यापक जन आंदोलन शुरू किया जाएगा।
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ज्ञापन के प्रमुख बिंदु
आप के जिला अध्यक्ष फिरोज हैदर ने ज्ञापन सौंपते हुए इस शासनादेश को शिक्षा विरोधी करार दिया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय लाखों गरीब, ग्रामीण, दलित, और पिछड़े वर्ग के बच्चों के भविष्य पर गहरा संकट लाएगा। सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, “प्रदेश में 2024 में 27,308 नई शराब की दुकानें खोली गईं, जबकि अब तक 26,000 से अधिक सरकारी स्कूल बंद किए जा चुके हैं, और अब 27,000 और स्कूल बंद करने की योजना है। क्या उत्तर प्रदेश को पाठशालाओं की जरूरत है या मधुशालाओं की?”
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ज्ञापन में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया गया:
- शासनादेश में अस्पष्टता: मर्जर के लिए न्यूनतम या अधिकतम छात्र संख्या का कोई स्पष्ट मापदंड नहीं बताया गया, जिससे प्रशासन को मनमानी का अवसर मिल रहा है।
- कानूनों का उल्लंघन: यह आदेश शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) और बाल अधिकार अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन करता है।
- रोजगार पर संकट: इस निर्णय से लगभग 1.35 लाख सहायक अध्यापकों, 27,000 प्रधान अध्यापकों, और हजारों शिक्षामित्रों व रसोइयों की नौकरियाँ खतरे में पड़ जाएँगी।
- टीईटी उत्तीर्ण युवाओं पर प्रभाव: शिक्षक बनने की आकांक्षा रखने वाले लाखों युवाओं को मानसिक और आर्थिक नुकसान होगा, जिससे बेरोजगारी और बढ़ेगी।
- निजीकरण को बढ़ावा: सरकारी स्कूलों को बंद कर निजी स्कूलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिनकी गुणवत्ता पर गंभीर सवाल हैं।
आप का तर्क और मांग
फिरोज हैदर ने कहा, “यदि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारें विश्व-स्तरीय सरकारी स्कूल चला सकती हैं, तो उत्तर प्रदेश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?” उन्होंने मांग की कि 16 जून 2025 का मर्जर आदेश तत्काल वापस लिया जाए और सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान दिया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि कम छात्र संख्या की समस्या का समाधान स्कूलों को बंद करना नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना है। आप ने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस आदेश को वापस नहीं लेती, तो पार्टी पूरे प्रदेश में बच्चों के भविष्य और सरकारी स्कूलों को बचाने के लिए धरना-प्रदर्शन और जागरूकता अभियानों के माध्यम से व्यापक जन आंदोलन शुरू करेगी।
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इस अवसर पर दिग्गज पांडेजी प्रभारी जिला बहराइच, प्रदीप कुमार सिंह जिला सचिव, मोहम्मद शईद खान जिला उपाध्यक्ष, अब्दुल रहमान जिला उपाध्यक्ष, अभय यादव विधानसभा अध्यक्ष बलहा, एजाज खान विधानसभा उपाध्यक्ष बहराइच, बुधराम पटेल जिला सचिन, हाजी नूर अहमद जिला कोषाध्यक्ष, अनुज पाठक बस्ती प्रभारी। रजत चौरसिया महासचिव बौद्ध प्रांत, ज्योति विश्वकर्मा महिला विंग जिला अध्यक्ष, सिपाही लाल कैसरगंज विधानसभा अध्यक्ष, एडवोकेट असलम खान विधानसभा अध्यक्ष बहराइच, कमर जहां महिला विंग सदस्य। उर्मिला देवी महिला विंग सदस्य, चांद बीबी महिला विंग सदस्य, गुलफसा महिला विंग सदस्य, सबीना महीला विंग सदस्य, शन्नो महिला विंग सदस्य, नूर आयसा महिला विंग सदस्य, शबनम महिला विंग सदस्य, अरबीना खान जिला उपाध्यक्ष उपस्थित रहे।
सामाजिक और शैक्षिक प्रभाव
यह ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन सरकारी स्कूलों के महत्व और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुँच को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय न केवल बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करेगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार पर भी गहरा असर डालेगा। स्थानीय समुदाय ने आप की इस पहल का स्वागत किया है और इसे शिक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए एक जागरूक और जिम्मेदार प्रयास बताया है।
भविष्य की योजनाएँ
फिरोज हैदर ने कहा कि आप इस मुद्दे को जन-जन तक ले जाएगी और यदि सरकार इस आदेश को वापस नहीं लेती, तो जागरूकता अभियान, धरना-प्रदर्शन, और अन्य लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है। उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों को बंद करने की नीति को हम किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे।”
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बहराइच में आम आदमी पार्टी का यह ज्ञापन और विरोध प्रदर्शन शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावों पर गंभीर सवाल उठाता है। यह आयोजन न केवल सरकारी स्कूलों को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, बल्कि यह समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता और सामुदायिक एकजुटता को भी दर्शाता है। अब सभी की निगाहें उत्तर प्रदेश सरकार और राज्यपाल पर टिकी हैं कि इस मांग पर क्या कार्रवाई की जाएगी।