अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
कैराना/शामली। मुहर्रम के पवित्र अवसर पर 1 जुलाई 2025 को कैराना नगर में शिया समुदाय द्वारा परंपरागत अलम-ए-जुलजनाह का जुलूस बड़े ही श्रद्धा, अनुशासन और शांति के साथ निकाला गया। यह जुलूस इमामबाड़ा कैराना से प्रारंभ होकर कर्बला डिग्री कॉलेज कैराना में शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। जुलूस में हजारों अकीदतमंदों ने हिस्सा लिया, जिन्होंने कर्बला के शहीदों, विशेष रूप से हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ‘या हुसैन’ की सदाओं से पूरा माहौल गमगीन और आध्यात्मिक हो उठा।
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जुलूस का आयोजन और महत्व
मुहर्रम का जुलूस शिया समुदाय के लिए गहरे आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है। यह जुलूस 680 ईस्वी (61 हिजरी) में कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में निकाला जाता है, जिन्होंने यजीद की अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ सत्य और न्याय के लिए अपनी जान कुर्बान की थी। कैराना में यह जुलूस इमामबाड़ा कैराना से शुरू हुआ, जो नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ कर्बला डिग्री कॉलेज तक पहुँचा। इस दौरान अकीदतमंदों ने नौहाख्वानी (मर्सिया और नौहा पाठ) और सीना-जनी (छाती पीटकर शोक व्यक्त करना) के माध्यम से इमाम हुसैन की शहादत को याद किया।
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जुलूस में अलम-ए-जुलजनाह, जो इमाम हुसैन के वफादार घोड़े जुलजनाह का प्रतीक है, विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। जुलजनाह ने कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत की खबर उनके परिवार तक पहुँचाई थी, और इसकी स्मृति में जुलूस में एक सजा हुआ घोड़ा शामिल किया गया, जिसे देखकर अकीदतमंदों की आँखें नम हो गईं।

महिलाओं की उल्लेखनीय भागीदारी
इस वर्ष के जुलूस की खास बात रही महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी। पर्दे के साथ महिलाओं ने नौहा पढ़ते हुए और अश्क बहाते हुए अपनी श्रद्धा प्रकट की। उनकी यह सक्रिय सहभागिता कर्बला की महिलाओं, विशेष रूप से हजरत जैनब (हुसैन की बहन) की साहस और धैर्य की याद दिलाती है, जिन्होंने कर्बला के बाद शहीदों का संदेश दुनिया तक पहुँचाया। महिलाओं की यह भागीदारी न केवल धार्मिक एकता को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक समावेशिता और लैंगिक समानता के प्रति भी एक सकारात्मक संदेश देती है।
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जुलूस की अगुवाई और सामुदायिक सहभागिता
जुलूस की अगुवाई मोहम्मद हुसैन कौसर ज़ैदी, अली हैदर ज़ैदी, शबीह हैदर ज़ैदी, वसी हैदर साक़ी, काशिफ़ रज़ा, और जावेद रज़ा जैसे प्रमुख अकीदतमंदों ने की। इन नेताओं ने जुलूस को अनुशासित और व्यवस्थित रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रास्ते भर अकीदतमंद ‘या हुसैन’ के नारे लगाते हुए और गम-ए-हुसैन मनाते हुए जुलूस के साथ चले। कई स्थानों पर स्वयंसेवकों और स्थानीय लोगों ने पानी और शरबत के स्टॉल लगाए, जो सभी के लिए निःशुल्क उपलब्ध थे, जो कर्बला में पानी की कमी की त्रासदी की याद दिलाता है।
सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था
जुलूस के दौरान शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन और स्थानीय वालंटियर्स पूरी तरह मुस्तैद रहे। सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, जिसमें प्रमुख चौराहों और मार्गों पर पुलिस बल की तैनाती शामिल थी। प्रशासन ने यातायात को नियंत्रित करने और जुलूस को सुचारु रूप से चलाने के लिए विशेष व्यवस्था की, जिसके कारण यह आयोजन बिना किसी व्यवधान के संपन्न हुआ। स्थानीय लोगों ने भी प्रशासन के सहयोग की सराहना की, जिसने इस धार्मिक आयोजन को शांतिपूर्ण और सुरक्षित बनाया।
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सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
कैराना में निकला यह मुहर्रम का जुलूस न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समन्वय का भी उदाहरण है। जुलूस में विभिन्न आयु वर्ग और समुदायों के लोग शामिल हुए, जो हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने के लिए एकजुट हुए। यह जुलूस इस बात का संदेश देता है कि इमाम हुसैन की शहादत न केवल शिया समुदाय के लिए, बल्कि सभी समुदायों के लिए सत्य, न्याय, और मानवता के लिए बलिदान का प्रतीक है।
भविष्य की अपेक्षाएँ
जुलूस के आयोजकों और स्थानीय नेताओं ने इस आयोजन को और भव्य और समावेशी बनाने की इच्छा जताई। उन्होंने भविष्य में और अधिक लोगों को इस धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में शामिल करने की योजना बनाई है, ताकि इमाम हुसैन के संदेश को व्यापक स्तर पर फैलाया जा सके। साथ ही, उन्होंने प्रशासन से अनुरोध किया कि भविष्य में भी इसी तरह की सुरक्षा और सहयोग की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
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कैराना का यह मुहर्रम जुलूस हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी और उनके आदर्शों को जीवंत रखने का एक शानदार उदाहरण रहा। ‘या हुसैन’ की गूँज और अलम-ए-जुलजनाह की मौजूदगी ने न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रबल किया, बल्कि सामुदायिक एकता और शांति का संदेश भी दिया। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने इस आयोजन को और भी विशेष बना दिया, जो कर्बला की महिलाओं के साहस और समर्पण की याद को जीवित करता है। यह जुलूस कैराना के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है।