अतुल्य भारत चेतना
ब्युरो चीफ हाकम सिंह रघुवंशी
नटेरन/विदिशा। बारिश का मौसम चल रहा है, और इस बीच ग्राम पंचायत नटेरन में एक 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला, गेंदा बाई, की दिल दहलाने वाली कहानी सामने आई है। यह बुजुर्ग मां, जो न तो ठीक से चल सकती हैं और न ही देख सकती हैं, अपने दो बेटों और पांच बेटियों द्वारा जर्जर कच्चे मकान में लावारिस छोड़ दी गई है। गेंदा बाई के तीन पुत्रों में से एक का कुछ वर्ष पहले निधन हो चुका है, और अब शेष सात संतानें—दो बेटे और पांच बेटियां—उनकी जिम्मेदारी लेने से मुकर रही हैं। यह मामला समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता और बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा को उजागर करता है।
इसे भी पढ़ें: जानिए क्या है लोन फोरक्लोजर? अर्थ, प्रक्रिया और ध्यान रखने योग्य बातें!
गेंदा बाई की दयनीय स्थिति
90 वर्षीय गेंदा बाई का कच्चा मकान गिरने की कगार पर है। बारिश के इस मौसम में, जहां छत टपक रही है और दीवारें कमजोर हो चुकी हैं, वह असहाय अवस्था में रह रही हैं। उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी है कि वे न तो चल-फिर सकती हैं और न ही ठीक से देख सकती हैं। इसके बावजूद, उनके बच्चे उनकी देखभाल करने के बजाय उन्हें अकेला छोड़ गए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, गेंदा बाई को सरकारी पेंशन और राशन मिलता है, लेकिन यह भी उनके बेटे और बहू निकाल ले जाते हैं, जिससे उनकी स्थिति और दयनीय हो गई है।

बच्चों की अनदेखी
गेंदा बाई के दो जीवित बेटों—हरनाम सिंह रघुवंशी, जो विदिशा में रहता है, और रघुवीर सिंह, जो इंदौर में रहता है—के साथ-साथ उनकी पांच बेटियां, जो अपने-अपने ससुराल में हैं, ने अपनी मां की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। यह वही मां हैं जिन्होंने नौ महीने अपने गर्भ में और फिर बचपन में इन बच्चों की सेवा कर उन्हें पाला-पोसा और बड़ा किया। लेकिन अब, बुढ़ापे में, ये सात बच्चे अपनी मां की देखभाल करने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं।
सामाजिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
स्थानीय लोगों ने गेंदा बाई की मदद के लिए आगे आकर उन्हें भोजन और अन्य जरूरी सुविधाएं प्रदान की हैं। मोहल्ले के लोग ही उनकी भोजन व्यवस्था कर रहे हैं, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है।नटेरन के एसडीएम अजय प्रताप सिंह ने मामले को गंभीरता से लेते हुए ग्राम पंचायत के सचिव और आजीविका मिशन को गेंदा बाई की स्थिति की पूरी जानकारी जुटाने और आवश्यक व्यवस्था करने के निर्देश दिए। साथ ही, उन्होंने बेटों के संपर्क नंबर प्राप्त करने को कहा।
बेटों और पोतियों की गैर-जिम्मेदारी
जब प्रशासन ने गेंदा बाई के बेटों से संपर्क किया, तो उनके बेटों और पोतियों ने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालनी शुरू कर दी। हरनाम सिंह और रघुवीर सिंह की बेटियां (गेंदा बाई की पोतियां) अपने पिता और चाचा को जिम्मेदार ठहराने लगीं। यह स्थिति दर्शाती है कि परिवार में कोई भी इस बुजुर्ग मां की देखभाल के लिए तैयार नहीं है।
इसे भी पढ़ें: शेयर ट्रेडिंग (Share Trading) से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी!
कानूनी प्रावधान और उनकी अनदेखी
भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (MWPSC Act, 2007) के तहत बच्चों और कानूनी उत्तराधिकारियों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल और भरण-पोषण की जिम्मेदारी दी गई है। इस कानून के तहत भोजन, कपड़े, आश्रय और चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करना अनिवार्य है। इसके अलावा, यह कानून बुजुर्गों की संपत्ति की रक्षा करता है और उनके साथ दुर्व्यवहार या परित्याग को रोकने के लिए प्रावधान करता है। यदि बच्चे इस जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें छह महीने की जेल और 5,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों शामिल हैं। हालांकि, गेंदा बाई के मामले में, इस कानून का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं हो पाया है। उनके बच्चे न केवल उनकी उपेक्षा कर रहे हैं, बल्कि उनकी पेंशन और राशन का भी दुरुपयोग कर रहे हैं। यह स्थिति समाज में बुजुर्गों के प्रति बढ़ती उदासीनता और कानूनी जागरूकता की कमी को दर्शाती है।

इसे भी पढ़ें: हम तेरे सपनों का हिन्दुस्तान बनाना भूल गए!
सामाजिक और नैतिक प्रश्न
गेंदा बाई की कहानी केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज में बदलते मूल्यों और बुजुर्गों के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता को दर्शाती है। एक मां, जिसने अपने आठ बच्चों को जन्म दिया, पाला-पोसा और बड़ा किया, आज उसी परिवार द्वारा लावारिस छोड़ दी गई है। नटेरन के एसडीएम अजय प्रताप सिंह ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और गेंदा बाई की मदद के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, उनके बेटों और पोतियों की गैर-जिम्मेदारीपूर्ण प्रतिक्रिया इस मामले की जटिलता को दर्शाती है। प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि गेंदा बाई को उचित देखभाल और आश्रय मिले, और उनके बच्चों को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जाए।
इसे भी पढ़ें: कामचोरों की तमन्ना बस यही…
गेंदा बाई की दर्दनाक कहानी समाज में बुजुर्गों के प्रति बढ़ती उदासीनता और पारिवारिक जिम्मेदारी की कमी को उजागर करती है। यह मामला न केवल सामाजिक और नैतिक सवाल उठाता है, बल्कि प्रशासन के लिए भी एक चुनौती है कि वह इस बुजुर्ग मां को न्याय दिलाए। स्थानीय लोगों की मदद और प्रशासन के प्रयासों के बावजूद, गेंदा बाई की स्थिति अभी भी अनिश्चित है। समाज और सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और बुजुर्गों को वह सम्मान और देखभाल मिले, जिसके वे हकदार हैं।