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Chhindwara news; गोधूलि वृद्धाश्रम में गुरु पर्वी महोत्सव: अहिंसा प्रेमियों ने की बुजुर्गों की सेवा, पौधारोपण और जलपात्र बांधे

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अतुल्य भारत चेतना
अखिल सुर्यवंशी

छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश की धर्म नगरी छिंदवाड़ा में 108 श्री तारण तरण दिगंबर जैनाचार्य श्रीगुरू महाराज के समाधि दिवस के अवसर पर गुरु पर्वी महोत्सव और उनके परम भक्त जिनशासन सेवक सेठ इंद्रकुमार जैन पेंटर (चौरई) की प्रथम पुण्य तिथि के उपलक्ष्य में गोधूलि वृद्धाश्रम में एक भावपूर्ण सेवा कार्य का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अहिंसा प्रेमी जैन बंधुओं ने “जियो और जीने दो” के सिद्धांत को चरितार्थ करते हुए बुजुर्गों की सेवा, पौधारोपण, और पक्षियों के लिए जलपात्र स्थापित किए।

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कार्यक्रम में सर्वोदय अहिंसा के प्रदेश संयोजक जिनशासन सेवक दीपक राज जैन, ऋषभ जैन (पिंटू भैया), महेंद्र जैन, दिलीप नामदेव, दीपक जैन, अक्षित विश्वकर्मा, श्रीमती संगीता जैन, फाल्गुनी जैन, काव्या जैन, भव्य जैन, अक्षरा जैन, कुशल जैन, और पाठशाला के अहिंसा प्रेमी विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। इन सभी ने वृद्धाश्रम के 86 बुजुर्गों को अपने हाथों से भोजन कराया, जिससे वहां उपस्थित सभी बुजुर्गों के चेहरे पर खुशी और संतुष्टि झलक रही थी।

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इस अवसर पर अहिंसा प्रेमियों ने गुरु पर्वी महोत्सव को जीव रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ मनाया। ग्रीष्मकाल को ध्यान में रखते हुए पक्षियों के लिए जलपात्र बांधे गए और उनमें पानी भरा गया। साथ ही, छिंदवाड़ा को स्वच्छ, स्वस्थ, और सुंदर बनाने के उद्देश्य से वृद्धाश्रम परिसर में पौधारोपण भी किया गया। इन कार्यों ने पर्यावरण संरक्षण और जीव दया के प्रति समुदाय की प्रतिबद्धता को दर्शाया।

बुजुर्गों का आशीर्वाद और समाज सेवा का संदेश

गोधूलि वृद्धाश्रम के सभी बुजुर्गों ने इस हृदयस्पर्शी सेवा कार्य के लिए अहिंसा प्रेमियों को दिल से आशीर्वाद दिया और उनके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना की। बुजुर्गों ने इस सेवा भाव को समाज के लिए एक प्रेरणादायी उदाहरण बताया।

संस्कारों का बीजारोपण

जिनशासन सेवक और समाज सेवी दीपक राज जैन ने कहा, “हम जनहित के सभी कार्यों में विशेष रूप से पाठशाला के बच्चों को शामिल करते हैं, ताकि उनमें बचपन से ही सेवा, पर्यावरण संरक्षण, और जीव दया के संस्कार विकसित हों। हमारा उद्देश्य है कि ये बच्चे बड़े होकर न केवल बुजुर्गों की सेवा करें, बल्कि पौधारोपण और पशु-पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था कर ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत अपनाएं। इससे वे एक अच्छे नागरिक बनने के साथ-साथ ‘अहिंसा परमो धर्म’ को जीवन में आत्मसात कर भक्त से भगवान बनने की दिशा में अग्रसर हों।”

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इस आयोजन ने न केवल गुरु पर्वी महोत्सव को सार्थक बनाया, बल्कि समाज में अहिंसा, सेवा, और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्थानीय समुदाय ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे सामाजिक और आध्यात्मिक उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

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