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अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ रेट से जुड़ी सभी प्रमुख जानकारी?

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टैरिफ क्या है?

टैरिफ एक प्रकार का कर (टैक्स) है जो सरकारें आयात (इम्पोर्ट) या निर्यात (एक्सपोर्ट) होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर लगाती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना, व्यापार संतुलन बनाए रखना, और सरकारी राजस्व बढ़ाना होता है। टैरिफ कई रूपों में हो सकता है, जैसे:

  • एड वैलोरम टैरिफ: उत्पाद के मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत (जैसे 10%)।
  • विशिष्ट टैरिफ: प्रति इकाई एक निश्चित राशि (जैसे प्रति किलो 50 रुपये)।
  • रेसिप्रोकल टैरिफ: किसी देश द्वारा दूसरे देश के टैरिफ के जवाब में लगाया गया टैरिफ।

उदाहरण के लिए, अगर भारत अमेरिका से आने वाले सेब पर 100% टैरिफ लगाता है, तो सेब की कीमत दोगुनी हो जाएगी, जिससे उत्पादकों को लाभ होगा, लेकिन आयातित सामान महंगा हो जाएगा। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ का असर भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योगों पर व्यापक रूप से पड़ सकता है। यह प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है, जो टैरिफ की दर, प्रभावित क्षेत्रों और भारत की जवाबी नीतियों पर निर्भर करेगा। वर्तमान तारीख 9 अप्रैल 2025 है, और हाल के समाचारों के अनुसार, अमेरिका ने भारत सहित कई देशों पर 26% का रेसिप्रोकल टैरिफ लागू किया है। नीचे इसके प्रभाव, फायदे और नुकसान की विस्तृत जानकारी दी गई है:


अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ रेट को ट्रेड वॉर के नजरिए से क्यों देखा जा रहा है?

अमेरिका ने हाल ही में विभिन्न देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू किए हैं, जैसे भारत पर 26%, चीन पर 34%-104%, वियतनाम पर 46%, और कनाडा व मेक्सिको पर 25%-50% तक। इसे ट्रेड वॉर के नजरिए से इसलिए देखा जा रहा है:

  1. जवाबी कार्रवाई का चक्र: अमेरिका का कहना है कि ये टैरिफ उन देशों के खिलाफ हैं जो अमेरिकी सामानों पर ऊंचे टैरिफ लगाते हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर 100% टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय मोटरसाइकिलों पर केवल 2.4% टैरिफ लेता है। इस असंतुलन को ठीक करने के नाम पर अमेरिका ने रेसिप्रोकल टैरिफ की नीति अपनाई, जिससे अन्य देश भी पलटवार कर सकते हैं।
  2. आर्थिक दबाव: ऊंचे टैरिफ से आयातित सामान महंगे हो जाते हैं, जिससे प्रभावित देशों की अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है। जैसे, चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा।
  3. वैश्विक व्यापार में अस्थिरता: टैरिफ की वजह से आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) प्रभावित होती है, कीमतें बढ़ती हैं, और शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव देखा जाता है। इससे एक पूर्ण पैमाने का ट्रेड वॉर शुरू होने की आशंका बढ़ती है, जैसा कि 2018-19 में अमेरिका-चीन के बीच देखा गया था।
  4. राजनीतिक संदेश: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा बनाया है, जिसका लक्ष्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना और व्यापार घाटे को कम करना है। लेकिन यह कदम वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) को बढ़ावा देता है, जो ट्रेड वॉर की नींव रख सकता है।

अमेरिका द्वारा बनाए गए टैरिफ का भारत और अन्य देशों पर क्या असर होगा?

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भारत पर असर:

  1. निर्यात में कमी: भारत का अमेरिका को निर्यात (2024 में 77.5 बिलियन डॉलर) प्रभावित होगा। टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटो पार्ट्स, और आभूषण जैसे क्षेत्रों में कीमतें बढ़ने से मांग घट सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत को सालाना 3.1 से 7 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है, जो GDP का 0.1% है।
  2. प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: चीन (34%-104% टैरिफ) और वियतनाम (46%) की तुलना में भारत पर कम टैरिफ (26%) है। इससे भारत को कुछ क्षेत्रों में फायदा हो सकता है, खासकर अगर अमेरिकी कंपनियां चीन से आयात कम करें।
  3. जवाबी टैरिफ की संभावना: भारत अभी तक जवाबी टैरिफ से बच रहा है, लेकिन दबाव बढ़ने पर ऐसा कर सकता है, जिससे दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते तनावपूर्ण हो सकते हैं।
  4. अवसर: “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि कंपनियां चीन से उत्पादन भारत में स्थानांतरित कर सकती हैं। साथ ही, अमेरिका से सस्ते कृषि उत्पाद (जैसे सोयाबीन) आयात करने का मौका मिल सकता है।

अन्य देशों पर असर:

  1. चीन: 34%-104% टैरिफ से चीन का अमेरिकी बाजार में निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा। चीनी कंपनियां पहले ही वियतनाम जैसे देशों में उत्पादन शिफ्ट कर रही हैं, लेकिन नए टैरिफ से यह रणनीति भी मुश्किल हो सकती है। जवाब में चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 34% टैरिफ लगाया है।
  2. वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड: क्रमशः 46%, 49%, और 36% टैरिफ से इन देशों के निर्यात पर भारी असर पड़ेगा। ये देश अमेरिका पर ज्यादा निर्भर हैं, और उनकी GDP का बड़ा हिस्सा (थाईलैंड में 60%) निर्यात से आता है।
  3. कनाडा और मेक्सिको: 25%-50% टैरिफ से उत्तरी अमेरिकी व्यापार समझौते प्रभावित होंगे। कनाडा ने पहले ही जवाबी टैरिफ की धमकी दी है, जिससे क्षेत्रीय व्यापार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
  4. यूरोपीय संघ और जापान: 20%-24% टैरिफ से यूरोप और जापान के ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात प्रभावित होंगे। यूरोप ने 28 बिलियन डॉलर के अमेरिकी सामानों पर टैरिफ की योजना बनाई है।

वैश्विक प्रभाव:

  • महंगाई और मंदी का खतरा: टैरिफ से सामानों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे वैश्विक महंगाई बढ़ सकती है। मूडीज के अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 0.6% की गिरावट और 2.5 लाख नौकरियां जा सकती हैं।
  • बाजार अस्थिरता: शेयर बाजारों में गिरावट देखी जा रही है, जैसा कि हाल ही में अमेरिका, यूरोप, और जापान में हुआ।
  • वैकल्पिक बाजारों की तलाश: देशों को अफ्रीका, लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों की ओर बढ़ना पड़ सकता है।

भारत पर प्रभाव

  1. निर्यात पर असर:
    • भारत का अमेरिका को निर्यात 2024 में लगभग 73.7 बिलियन डॉलर था, जिसमें फार्मास्युटिकल्स, टेक्सटाइल, पेट्रोलियम उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, आभूषण और ऑटोमोटिव पार्ट्स प्रमुख हैं। 26% टैरिफ से ये उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी मांग और प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।
    • विशेष रूप से समुद्री खाद्य (जैसे झींगा), फार्मा और मशीनरी जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे। उदाहरण के लिए, भारत अमेरिका को झींगा का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन टैरिफ के कारण इक्वाडोर जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
  2. आर्थिक नुकसान:
    • अनुमान के मुताबिक, भारत को सालाना 2 से 7 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। यह नुकसान निर्यात में कमी, नौकरियों के नुकसान और छोटे-मध्यम उद्यमों (SME) पर दबाव के रूप में सामने आएगा।
    • रुपये पर भी दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि निर्यात से होने वाली विदेशी मुद्रा आय कम होगी।
  3. उपभोक्ता और उद्योग:
    • अमेरिका में भारतीय उत्पादों की कीमत बढ़ने से वहां के उपभोक्ताओं को नुकसान होगा, खासकर जेनेरिक दवाओं और पेट्रोलियम जैसे क्षेत्रों में। भारत में भी आयातित अमेरिकी सामानों की कीमत बढ़ सकती है, अगर भारत जवाबी टैरिफ लगाता है।
  4. जवाबी कार्रवाई की संभावना:
    • भारत अमेरिकी उत्पादों (जैसे ईंधन, मशीनरी, रक्षा उपकरण) पर जवाबी टैरिफ लगा सकता है या नए व्यापारिक बाजार (जैसे इंडोनेशिया, यूरोप) तलाश सकता है। इससे दीर्घकालिक व्यापारिक रणनीति में बदलाव आ सकता है।

फायदे

  1. घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन:
    • यदि भारत जवाबी टैरिफ लगाता है, तो घरेलू उद्योगों (जैसे स्टील, रिफाइनरी, ऑटोमोटिव) को संरक्षण मिल सकता है। इससे स्थानीय उत्पादन और नौकरियां बढ़ सकती हैं।
    • अमेरिका द्वारा अन्य देशों (जैसे चीन पर 54%, वियतनाम पर 46%) पर ज्यादा टैरिफ लगाने से भारत को अपेक्षाकृत लाभ मिल सकता है। उदाहरण के लिए, खिलौना उद्योग में भारत अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
  2. नए बाजारों की खोज:
    • टैरिफ से प्रेरित होकर भारत अपने निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों (जैसे ASEAN देश, अफ्रीका) पर ध्यान दे सकता है, जिससे व्यापारिक निर्भरता कम होगी।
  3. बातचीत का अवसर:
    • भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते की संभावना बढ़ सकती है। यदि भारत अमेरिकी आयात पर टैरिफ कम करता है, तो अमेरिका भी अपने टैरिफ में छूट दे सकता है, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा।
  4. प्रतिस्पर्धी लाभ:
    • कुछ क्षेत्रों में (जैसे खिलौने, टेक्सटाइल), जहां प्रतिस्पर्धी देशों पर ज्यादा टैरिफ लगा है, भारतीय निर्यातकों को अपेक्षाकृत कम प्रभाव के कारण लाभ मिल सकता है।

नुकसान

  1. निर्यात में कमी:
    • फार्मास्युटिकल्स (12.72 बिलियन डॉलर), इलेक्ट्रॉनिक्स (14.39 बिलियन डॉलर), और मशीनरी (7.10 बिलियन डॉलर) जैसे क्षेत्रों में निर्यात प्रभावित होगा। जेनेरिक दवाएं महंगी होने से अमेरिकी बाजार में भारत की हिस्सेदारी घट सकती है।
    • समुद्री खाद्य निर्यात (2.5 बिलियन डॉलर) पर असर से भारत इक्वाडोर जैसे देशों से पिछड़ सकता है।
  2. नौकरियों पर संकट:
    • निर्यात-निर्भर उद्योगों में नौकरियां कम हो सकती हैं। विशेष रूप से SMEs, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं, को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।
  3. महंगाई का दबाव:
    • यदि भारत जवाबी टैरिफ लगाता है, तो अमेरिकी आयात (जैसे पेट्रोलियम, मशीनरी) महंगे होंगे, जिससे भारत में उत्पादन लागत और उपभोक्ता कीमतें बढ़ सकती हैं।
  4. व्यापारिक संबंधों में तनाव:
    • अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ सकता है, जो भारत के लिए रक्षा और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में नुकसानदायक हो सकता है।

संभावित रणनीतियां

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  • बातचीत: भारत अमेरिका के साथ टैरिफ कम करने के लिए द्विपक्षीय समझौते पर जोर दे सकता है।
  • विविधीकरण: निर्यात बाजारों को विविधता देकर अमेरिका पर निर्भरता कम की जा सकती है।
  • घरेलू सुधार: उत्पादन लागत कम करने और गुणवत्ता बढ़ाने से भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी।

अमेरिका का 26% टैरिफ भारत के लिए अल्पकाल में नुकसानदायक हो सकता है, खासकर निर्यात और रोजगार के मोर्चे पर। हालांकि, यह भारत को अपनी व्यापारिक रणनीति में सुधार करने और नए अवसर तलाशने का मौका भी देता है। यदि दोनों देश बातचीत के जरिए समाधान निकालते हैं, तो नुकसान को कम किया जा सकता है। भारत की प्रतिक्रिया और वैश्विक व्यापारिक स्थिति इस प्रभाव की गहराई तय करेगी।


अमेरिका के टैरिफ को ट्रेड वॉर के रूप में इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि यह संरक्षणवाद और जवाबी कार्रवाइयों को बढ़ावा देता है। भारत पर इसका असर मिश्रित होगा—कुछ नुकसान के साथ अवसर भी मिलेंगे। लेकिन चीन और अन्य एशियाई देशों पर प्रभाव ज्यादा गंभीर होगा। लंबे समय में, यह वैश्विक व्यापार और आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है, जब तक कि देश आपसी समझौतों से इसे संतुलित न करें।

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