अतुल्य भारत चेतना
रईस
नानपारा/बहराइच। जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबा पंकज जी महाराज अपनी 108 दिवसीय यात्रा के 103 वें पड़ाव पर यहाँ से 8 कि.मी. दूर अमवा हुसैनपुर महतो की बाग ब्लॉक-बलहा में सायंकाल पहुँचे। लम्बी-लम्बी कतारों में माताओं, बहनों, बालिकाओं ने कलशदीप, आरती, पुष्प वर्षा, बाजों-गाजों के साथ भव्य स्वागत किया। पूरा झूलहू मेला मैदान जयगुरुदेव और शाकाहारी नारों से गूँज उठा। यात्रा के 104 वें दिन सत्संग सुनाते हुए प्रसिद्ध आध्यात्मिक सन्त बाबा पंकज महाराज ने कहा कि मनुष्य शरीर साधना मन्दिर है। इसी शरीर में परमात्मा के पास जाने का दरवाजा है, जिसे दसवाँ द्वार, मोक्षद्वार या मुक्ति का फाटक कहते हैं। वह परमात्मा हमारे अन्दर बैठा है, परन्तु अज्ञानता में हम सब लोग उसे बाहर जड़ पदार्थों में खोज रहे हैं। जीवात्मा चेतन है, परमात्मा भी चेतन है। चेतन की पूजा से चेतन मिलेगा। महापुरुषों ने कहा है कि ”कस्तूरी कुण्डलि बसे, मृग ढूँढे वन माहिं, ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखै नाहिं।” उन्होंने कहा कि परमात्मा जीते जी मिलता है, उसके देखने के लिए जीवात्मा में एक आँख है, उसकी आवाज सुनने का अलग कान है। इन्हें तीसरी आँख, तीसरा कान कहते हैं। शिव नेत्र सबके पास है। कर्माें की गन्दगी का पर्दा पड़ा है। शिव नेत्र खोलने वाले गुरु मिल जाए तो पर्दा साफ कर देंगे। आँख और कान खुल जायेंगे। प्रभु की परा सृष्टि के दर्शन होने लगेंगे।

इसी विद्या को भारत की सनातन अध्यात्म विद्या, परा ज्ञान, स्प्रिचुअल साइंस, आत्मा परमात्मा का विज्ञान कहते हैं। बाबा जयगुरुदेव के एक मात्र उत्तराधिकरी ने कहा कि पिछले युगों की कठिन साधना पद्धतियों से इस कलयुग मे कुछ नहीं होगा। सन्तों ने सुरत शब्द योग (नाम योग) का रास्ता जारी किया। संस्था प्रमुख बाबा पंकज महाराज ने कहा कि अच्छे संस्कार कोई शिक्षा, तालीम से, डिग्री डिप्लोमा लेने से नहीं पड़ जाते। संस्कार पड़ते हैं सत्संग से, महात्माओं की वचन वाणियों से। यदि एम.ए., बी.ए. की डिग्री लेने से संस्कार पड़ जाते तो भारत में इतने वृद्धाश्रम ना खोले जाते। आने वाली पीढ़ियों को वैचारिक प्रदूषण से बचाने के लिए सभी लोग अपने बच्चों को शाकाहारी एवं नशामुक्त बनाये। सत्संग में लाते, ले जाते रहें। सत्संग में सेवा करना सिखाया जाता है।