अतुल्य भारत चेतना
पतित यादव
बाघामुड़ा/बागबाहरा। बाघामुड़ा में लगभग 90 वर्ष से चला आ रहा है दशहरा, जिसे विजयदशमी या दशईं के नाम से भी जाना जाता है। हर साल नवरात्रि के अंत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। भारत के दक्षिणी, पूर्वी, उत्तरपूर्वी और कुछ उत्तरी राज्यों में, विजयादशमी दुर्गा पूजा के अंत का प्रतीक है, जो धर्म को बहाल करने और उसकी रक्षा करने के लिए राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत को दर्शाती है। इस साल 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर नवरात्रि मनाया गया 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया गया। कई क्षेत्रों में यह रामलीला के अंत का प्रतीक है, और रावण पर भगवान राम की जीत को याद करता है, अधिकांश उत्तरी और पश्चिमी भारत में रामायण और रामलीला पर आधारित हजारों नाटक-नृत्य-संगीत और नाटक कर सीता हरण और राम का रावण पर विजय को प्रदर्शित करता है। वाराणसी में नवरात्रि के नौं दिनों तक रामलीला की पूरी कहानी को आध्याय के रूप में कलाकारों द्वारा स्वतंत्र रूप से दिखाया किया जाता है। नौ दिनों तक हर शाम जनता के सामने कलाकार नाटक करते हैं। देश भर के मेलों में और अस्थायी रूप से निर्मित मंचन मैदानों में राक्षस रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलें बनाए जाते हैं और दसवें दिन यह रावण दहन के रूप में समाप्त होता है।
विजयदशमी समारोह में जुलूस शामिल होता है, जिसमें दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को संगीत और मंत्रों के साथ ले जाना शामिल होता है, जिसके बाद छवियों को विघटन और विदाई के लिए पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। विजयदशमी के बीस दिन बाद दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। कार्यक्रम में उपस्थित रहे समिति के सदस्य डॉ.ओम प्रकाश देवांगन, कुलेश चंद्राकर, डोमार चंद्राकर, ,खोमन ध्रुव, हेमलाल, कवल सिंह ,यादराम साहू, साहू, विकाश, डार्विन, भूदेव, मुकेश, अशोक, प्रकाश, रामकुशल,सोनू, तोरण, अरविंद, ठाकुर राम ,चंदन सहित समस्त ग्राम वासी बाघामुड़ा उपस्थित रहे।