



अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप
रतनपुर। ऐतिहासिक नगरी रतनपुर प्राचीन काल से ही शिव और शक्ति का साधना स्थली रहा है। जहां शक्ति के रूप में सिद्ध शक्तिपीठ महामाया देवी के साथ ही लखनी देवी, तुल्जा भवानी, सटवाई देवी, कोसगई माता, मरही माता, झिथरी माता, मावली माता आदि सिद्ध शक्तियों का मंदिर है, वहीं बारह ज्योतिर्लिंग स्वरूप यहां बारह ऐतिहासिक शिव मंदिर भी है जो भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। इसमें वृद्धेश्वर महादेव मंदिर के पश्चात करैहापारा के ऐतिहासिक रत्नेश्वर तालाब के पश्चिमी पार में स्थित रत्नेश्वर महादेव का मंदिर सर्वोपरि है। इस ऐतिहासिक मंदिर की स्थापना सोलहवीं सदी में राजा रत्नसेन ने करवाया था। इसके पूर्व यह मंदिर तालाब के बीच बने टापू में स्थित था जहां रानी बेदमती जिसके नाम से बेद तालाब है, प्रतिदिन तालाब में आच्छादित पुरइन पत्ते के ऊपर चलकर पूजा करने जाया करती थी जो इनके शिव भक्ति का प्रभाव था। आकार में लगातार बढ़ते जा रहा इस शिव लिंग की महिमा निराली है। मगर इस मंदिर का रेख – देख जिनके हाथों है, उनके क्षुद्र स्वार्थ के चलते मंदिर का विकास अवरूद्ध है। राजाओं के समय से ही पीढ़ी गत ये पुजारी एवं प्रबंधक है मगर नियमानुसार कभी यहां पूजा नहीं होती जबकि मंदिर में पूजा के निमित्त खेती बाड़ी की भूमि भी राजाओं के द्वारा इनके पूर्वजों को मिला हुआ है जिनका लाभ ये ले रहे है। मंदिर में चढ़ावे का उपभोग ही केवल इनके द्वारा किया जा रहा है जो कि सही नहीं है। लोगों का कहना है कि इस मंदिर को महामाया ट्रस्ट को सौंप देना चाहिए और तभी इस मंदिर का विकास संभव है। वर्तमान में इस मंदिर के पुजारियों में तीन परिवार है, दो परिवार एक एक वर्ष संचालन करते हैं एवं तीसरा परिवार दो वर्ष संचालन करता है। कुछ वर्षों से यही क्रम चल रहा है।जानकारी मिली है, इस वर्ष मंदिर का संचालन जिनके हाथों है उन्होंने सावन के शुरू में ही श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर के सभा मंडप में लगायें गये घंटी को कटवाकर घर ले गये। जो कि किसी भी मंदिर के पुजारी के लिए अशोभनीय है। परंपरानुसार श्रावण मास का पूजा, अभिषेक भी नहीं हो रहा है। जो भी हो रत्नेश्वर महादेव की महिमा अपार है प्रति वर्ष सावन में हजारों की संख्या में शिव भक्त यहां दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करते है।