
अतुल्य भारत चेतना
वीरेंद्र यादव
रतनपुर। छत्तीसगढ़ का एक मात्र मंगल दोष निवारण मंगला गौरी मंदिर रतनपुर।महंत दैवज्ञ पंडित रमेश शर्मा ने बताया की मात्र सात मंगलवार मंगला गौरी के दर्शन मात्र से मंगल दोष कम होने लगता है पवित्र सावन मास में अभी चंदमौलीश्वर महादेव मंदिर में प्रतिदिन रूद्राभिषेक हों रह है सावन के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है कुंवारी कन्या सुयोग्य वर के लिए सुहागिन महिलाएं अखंड सुहाग के लिए तथा संतान प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत रखते हैं धर्म नगरी रतनपुर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी में शंकराचार्य आश्रम में मां मंगला गौरी का मंदिर है जहा लोग बड़ी दूर दूर से मन्नत मांगने के लिए आते हैं और मनवांछित फल प्राप्त करते हैं मंगला गौरी कथा सुनने मात्र से जीवन में मंगल होने लगता है मंगला गौरी पूजन व्रत कथा सावन मास के प्रति मंगलवार को किए जाने वाला व्रत सुहागिन को अखण्ड सौभाग्य एवम कुंवारी को इच्छित वर प्राप्ति देने वाला व्रत।। मंगलिक दोष का पूर्ण निवारण जय माता दी,जय श्री गुरुदेव
हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा का अपना ही एक अलग महत्व होता है और हर पूजा को किसी न किसी उद्देश्य की वजह से किया जाता है। यदि आपके विवाह में कोई बाधा आ रही हो या वैवाहिक जीवन में नोकझोंक चल रही हो और आपको संतानसुख की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो आपको मां मंगला गौरी के व्रत को विधिविधान से करना चाहिए। मां मंगला गौरी व्रत श्रावण माह के मंगलवार को ही किया जाता है। मां पार्वती का पूजन करते वक्त सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही इस व्रत के लिए एक पौराणिक कथा प्रचलित है। पौराणिक लोक कथा के अनुसार, पुराने समय में एक धर्मपाल नाम का सेठ था। उसके पास धनधान्य की कमी नहीं थी लेकिन उसका वंश बढाने के लिए उसके कोई संतान नहीं थी। इस वजह से सेठ और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे। जिसके चलते सेठ ने कई जप-तप, ध्यान और अनुष्ठान किए, जिससे देवी प्रसन्न हुईं। देवी ने सेठ से मनचाहा वर मांगने को कहा, तब सेठ ने कहा कि मां मैं सर्वसुखी और धनधान्य से समर्थ हूं, परंतु मैं संतानसुख से वंचित हूं मैं आपसे वंश चलाने के लिए एक पुत्र का वरदान मांगता हूं। देवी ने कहा सेठ तुमने यह बहुत दुर्लभ वरदान मांगा है, पर तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वरदान तो दे देती हूं लेकिन तुम्हारा पुत्र केवल 16 साल तक ही जीवित रहेगा। यह बात सुनकर सेठ और सेठानी काफी दुखी हुए लेकिन उन्होंने वरदान स्वीकार कर लिया। देवी के वरदान से सेठानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। सेठ ने अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया और उसका नाम चिरायु रखा। समय बीतता गया और सेठ-सेठानी को पुत्र की मृत्यु की चिंता सताने लगी। तब किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि यदि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करा दे जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो। इसके फलस्वरूप कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके वर को दीर्घायु प्राप्त होगी। सेठ ने विद्वान की बात मानकर अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से ही किया, जो मंगला गौरी का विधिपूर्वक व्रत रखती थी। इसके परिणामस्वरूप चिरायु का अकाल मृत्युदोष स्वत: ही समाप्त हो गया और राजा का पुत्र नामानुसार चिरायु हो उठा। इस तरह जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या पूरे श्रद्धाभाव से मां मंगला गौरी का व्रत रखती हैं उनकी सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं और उनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है। व्रत विधि: सूर्य उगने से पहले उठें और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ या नये कपड़े पहनें. इस व्रत में एक ही समय एक ही प्रकार केअन्न ग्रहण किया जाता है.
एक लकड़ी के तख्त पर सफेद कपड़ा बिछाएं उस पर चावल के 9 ढेरी बनाए उसे नवग्रह माने । सामने मे गणेश भगवान रखे । साथ मे कलश भी रखें। दूसरे पाटे में लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर गेंहू के 16 ढेरी रखें जिसे षोडश मातृका माने । उसी पाटे में मिट्टी के मां मंगला गौरी यानी मां पार्वती की मूर्ति या मिट्टी के ढेरी 5रखें ।
इस मंत्र का उच्चारण करें और व्रत का संकल्प लें. ‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये’सवर्प्रथम कलश जलाए। ग णेश भगवान की पूजा करें ,कलश की पूजा करे। कलश में जनेऊ व सिंदूर न चढ़ाए । फिर चावल के 9 ढेरी को नवग्रह मानकर पूजन करें। लाल कपड़े में विराजित मिट्टी के मंगलागौरी मूर्ति या ढेरी के पंचामृत स्नान सहित पूजा करे। गेहूं के 16 ढेरी को षोडश देवी मानकर पूजन करे। हर ढेरी में एक एक हल्दी,सुपाड़ी,धनिया, जीरा, टिकली, सिंदूर, काजल,चूड़ी, तेल,कंधी, रालता, फूल,फल,मेवा, लोंग, इलायची, पान ,16 प्रकार के पत्ते ,16 प्रकार के फल, 16 माला ,16 धूप बत्ती दिखाए तथा 16 बत्ती के आरती करें।। मंगलागौरी को पञ्चमेवा आर्पित करें।16 आटे की लड्डू चढ़ाए । जिसे पूजन के बाद अपने सास या मां के आँचल में डाले और उनसे आशीर्वाद ले । पूजन के पश्चात दूसरे दिन तक वहां के किसी भी साम्रगी को न हटाए। बुधवार को स्नान करने के पश्चात सुहाग साम्रगी को सुहागिन को दे । मिट्टी के मंगलागौरी ,चावल गेंहू सहित अन्य साम्रगी को तालाब, नदी,कुआं आदि में विसर्जित करें।फल और मिष्टान्न को ब्रह्मण, गाय के बाद अन्य पूज्य को दे।
इसके बाद इस मंत्र को पढ़ें:
‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।
पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।। श्रीमहन्त पण्डित रमेश शर्मा श्री मंगलागौरी मन्दिर धाम
श्री शंकराचार्य आश्रम बिलासपुर (गोवर्धन मठ पुरी पीठ से सम्बन्द्ध)