वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी माँ तबस्सुम हसन की हार का बदला लिया चौधरी इक़रा हसन ने
अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
कैराना। पलायन को 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मुद्दा बनाकर अपनी नैया पार लगाई थी। उसी पलायन की धरती ने इस भाजपा को करारी हार दी है।गठबन्ध प्रत्याशी चौधरी इक़रा हसन ने शानदार जीत हासिल करके 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार का बदला भी ले लिया है।

वर्ष 2013 में जनपद शामली व मुज़फ्फरनगर में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता दिवंगत बाबू हुकुम सिंह ने जोर शोर के साथ कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा दमदार तरीके से उठाकर हलचल पैदा कर दी थी। जिसके बाद कैराना में नेशनल मीडिया का जमावड़ा लग गया था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कैराना पलायन को चुनावी मुद्दा बनाकर राजनीतिक लाभ लिया था। इसी पलायन की धरती से आज भाजपा को करारी हार मिली है। गठबंधन प्रत्याशी चौधरी इकरा हसन ने भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी को 71938 मतों से पराजित कर विजय पताका लहराई है। चौधरी इक़रा हसन ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदीप चौधरी के सामने मिली अपनी माँ के हार का बदला भी ले लिया है। इक़रा हसन की सादगी और उनकी मेहनत के आगे प्रदीप चौधरी चारों खाने चित्त हो गए और उन्होंने विजय पताका लहरा कर खुद को साबित किया है।वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भाई नाहिद हसन को जेल में रहते हुए जीत दिलाने के बाद इक़रा हसन की काबलियत का लोहा माना गया था। तभी से इकरा हसन को भविष्य का एमपी कहा जाने लगा था। जीतोड़ मेहनत करने वाली हाई प्रोफाइल पढ़ी लिखी इक़रा हसन ने बहुत जल्द मतदाताओं के दिलों में अपनी जगह पक्की कर ली थी।यही कारण है कि सर्वसमाज के लोगों ने उसे अपना मत दिया और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए दिल्ली भेजा है।

हसन परिवार का रहा राजनीतिक इतिहास
हसन परिवार के राजनीतिक इतिहास पुराना है। वर्ष 1984 में मरहूम संसद चौधरी मुनव्वर हसन के पिता अख्तर हसन ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और लोकदल प्रत्याशी श्याम सिंह को 98549 मतों से करारी हार देकर एमपी बने।इनके Adhu हसन परिवार ने मुड़कर पीछे नहीँ देखा।वर्ष 1996 में मुनव्वर हसन ने सपा से लोकसभा का चुनाव लड़ा और भाजपा के उदयवीर को दस हज़ार 22 मतों से हराकर एमपी बने।उसके बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में वह जजनपद मुज़फ्फरनगर से चुनाव लड़े और बीजेपी के अमरपाल सिंह को 69005 मतों से करारी हार देकर दुबारा एमपी बने।दस दिसंबर वर्ष 2008 में हुए सड़क हादसे में हुई दुखद मौत के बाद उनकी पत्नी वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं और सहानुभूति के चलते उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता बाबू हुकुम सिंह हो 22463 मतों से हराकर एमपी बनीं। उसके बाद वर्ष 2014 में उनके पुत्र नाहिद हसन को कैराना लोकसभा सीट से सपा ने प्रत्याशी बनाया,लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी बाबू हुकुम सिंह के सामने 236828 वोटों से हार गए। वर्ष 2019 में सपा ने फिर चौधरी तबस्सुम हसन पर विश्वास जताकर उन्हें प्रत्याशी घोषित किया,लेकिन वह भाजपा के प्रदीप चौधरी के सामने 9216 वोटों से हार गईं।
subscribe our YouTube channel
