एक दर्जन से अधिक स्थानों पर विराजित की गई गवर मां की श्रृंगारित प्रतिमाएं
अतुल्य भारत चेतना
गर्वित जोशी
जोधपुर। प्रदेश की सांस्कृक्तिक व धार्मिक राजधानी जोधपुर में शनिवार रात को अनूठा धींगा गवर का उत्सव मनाया गया।
शहर के भीतरी क्षेत्र में धींगा गवर पूजन पूर्ण होने पर रतजगे की अलख में मस्ती और अनूठे स्वांग रची तीजणियों की धूम रही।

धींगाणे की मस्ती में सराबोर महिलाएं विभिन्न स्वांग रचकर घर से बाहर निकली।
कोई राधा-कृष्ण तो कोई राम-सीता, शिव-पार्वती आदि की स्वांग रचे हुई थी।

शहर में करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर स्थापित गवर की प्रतिमा के दर्शन करने जाने के दौरान इन महिलाओं ने राह में बाधक बनने वाले पुरुषों को सुसज्जित बेंत भी बरसाये
मान्यता है कि इन महिलाओं के हाथों बेंत की मार खाने से कुंवारे युवक की जल्दी शादी हो जाती हैं
धींगा गवर पूजन उत्सव के सोलह दिवसीय अनुष्ठान पूर्ण होने पर धींगा गवर की भोळावणी भी हुई। महिलाओं के उमंग, चुहल व उल्लास के पर्व पर परकोटे के भीतरी शहर में गणगौर गीत सुनने को मिले।

डीजे पर गूंजते पारम्परिक गवर गीतों पर नृत्य के साथ गवर गीतों का गायन कर अपनी भावनाओं का इजहार किया गया।
धींगा गवर मेले के दौरान शहर के भीतरी इलाकों में तीजणियों का सम्मान किया गया।
तीजणियों के लिए विशेष व्यवस्था के साथ ही अल्पाहार एवं आकर्षक श्रृंगार करके आने वाली तीजणियों को पारितोषिक प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इस दौरान खाने-पीने की स्टालें भी लगाई गई।
कई जगह स्टेज बनाए गए और आर्केस्ट्रा पर अपनी प्रस्तुति दी।

इन स्टेज पर तीजणियों को भी गाने का मौका मिला और बेस्ट सिंगर्स को
अवार्ड दिए गए।
तीजणियों की मनुहार फ्रूट क्रीम, आइसक्रीम, ड्राई फ्रूट्स से की गई। स्वांग रची तीजणियां अपने-अपने ग्रुप के साथ रात दस बजे के बाद भीतरी शहर के विभिन्न गली-मौहल्लों में स्थापित गवर के दर्शनों के लिए निकली।
तीजणियों ने इस बार स्वांग रचने के लिए भी कुछ ट्रेंडी और फंकी स्टाइल चुना।

हालांकि इस बार भी ट्रेडिशनल और रिलीजियस लुक दिखे।
गवर मेले में चुनाव की रंग भी दिखाई दिया।
वहीं हीरो-हीरोइन, सेठ सेठानी सहित स्पोर्ट्स पर्सनलिटी भी दिखाई दी। स्वांग रचने की तैयारी सुबह से ही शुरू हो गई थी।
यह है बेंत खाने की मान्यता :
मान्यता है कि तीजणियों के हाथों बेंत खाने वाले कुंवारे लड़के की शादी जल्दी हो जाती है। इतिहासकारों के
अनुसार करीब सौ साल पहले ये मान्यता थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा लेकर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी।
वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती। बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरुष सावधान हो जाए।
गवर के दर्शन करने की बजाय वे किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे।

कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत या डंडे की मार पड़ती है उसका जल्दी ही विवाह हो जाता।
इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले में आने लग गया।
देशभर में केवल जोधपुर में मनाए जाने वाले अनूठे धींगा गवर पूजन महोत्सव के समापन की रात जोधपुर परकोटे के भीतरी शहर में महिलाओं का एकछत्र राज कायम हो जाता है। शहर में अलग-अलग जगहों पर स्थापित आकर्षक गवर प्रतिमाओं के दर्शन के दौरान रास्ते में जो भी पुरुष बाधक बनता है, उसे तीजणियों के बेंतों की बौछार झेलनी पड़ती है। धींगा गवर पूजन पूर्ण होने पर रतजगे की अलख में मस्ती और धूम मचाती अनूठे स्वांग रची तीजणियों का धींगाणा मस्ती व धमाल देखने पूरा शहर उमड़ता है। भोर में गवर माता को ससुराल के लिए विदाई की रस्म भोळावणी कहलाती है। इस रस्म को पुरुषों को देखना वर्जित माना गया है। रस्म के समय यदि कोई पुरुष गलती से भी सामने आता है तो उसे हटा दिया जाता है।
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