अतुल्य भारत चेतना
ब्युरो चीफ हाकम सिंह रघुवंशी
गंजबसौदा/विदिशा। गंजबासौदा के महाराणा प्रताप चौक पर 29 मई 2025 को महाराणा प्रताप राजपूत समिति द्वारा वीर योद्धा महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस अवसर पर समिति ने पुष्पों द्वारा पूजा-अर्चना और हार माला अर्पित कर महाराणा प्रताप के शौर्य और बलिदान को याद किया। हिंदू पंचांग के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को हुआ था, जिसके आधार पर यह जयंती 29 मई को मनाई गई।
आयोजन का विवरण
महाराणा प्रताप राजपूत समिति के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों और समुदाय के लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। समारोह में विशेष रूप से वीरेंद्र सिंह, एडवोकेट जगदीप सिंह मसूदपुर, देवेंद्र सिंह जादौन, भाजपा के वरिष्ठ नेता विनोद सिंह राठौर, अमन सिंह, एडवोकेट प्रेम सिंह तोमर, वर्तमान अध्यक्ष बसंत सिंह धकरे, प्रवीण सिंह जादौन, अमर सिंह तोमर, निरंजन सिंह बंटी, चंद्रभान सिंह राजपूत, वर्तमान महामंत्री सतनाम सिंह राजपूत, राजेंद्र सिंह (प्रवक्ता), सौभाग्य सिंह राजपूत, प्रमोद सिंह राजपूत, किशोर सिंह भदोरिया, किशोर सिंह सिसोदिया, पत्रकार हाकम सिंह रघुवंशी, राजा राम रघुवंशी, सोनालिका ट्रैक्टर, सरपंच तखत सिंह रघुवंशी (बिहारीपुर) सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।
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कार्यक्रम में महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए गए और हार माला डालकर उनकी वीरता को नमन किया गया। समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीप सिंह मसूदपुर ने बताया कि महाराणा प्रताप को एकलिंग जी दीवान और हिंदू सूर्य की उपाधि से सम्मानित किया गया था। मेवाड़ रियासत के इस महान शासक ने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े, जिनमें हल्दीघाटी का युद्ध विशेष रूप से प्रसिद्ध है। उनकी वीरता और स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष ने भारत की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक महत्व
महाराणा प्रताप, जिनका जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ (या कुछ स्रोतों के अनुसार पाली, मारवाड़) में हुआ था, मेवाड़ के सिसोदिया वंश के 13वें शासक थे। उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जयवंता बाई थीं। उन्होंने अपने जीवन में 11 विवाह किए, जिनमें उनकी पहली पत्नी महारानी अजबदे पंवार थीं, और उनके 17 पुत्र और 5 पुत्रियां थीं।
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महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए आजीवन संघर्ष किया। हल्दीघाटी के युद्ध (1576) में उनके वफादार घोड़े चेतक की वीरता और उनके छापामार युद्ध की रणनीति ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया। युद्ध के बाद उन्होंने अरावली की पहाड़ियों में कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत किया, फिर भी अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।
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आयोजन का संचालन
कार्यक्रम का संचालन महाराणा प्रताप राजपूत समिति द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से किया गया। समिति के वर्तमान अध्यक्ष बसंत सिंह धकरे और महामंत्री सतनाम सिंह राजपूत ने आयोजन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पत्रकार हाकम सिंह रघुवंशी ने बताया कि यह आयोजन न केवल महाराणा प्रताप की वीरता को श्रद्धांजलि देने का अवसर था, बल्कि युवा पीढ़ी को उनके आदर्शों और बलिदान से प्रेरणा लेने का संदेश भी देता है।
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महाराणा प्रताप जयंती का यह आयोजन गंजबासौदा में सामुदायिक एकता और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक रहा। महाराणा प्रताप की गाथा आज भी स्वतंत्रता, स्वाभिमान और साहस की मिसाल है, जो युवा पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी।