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रतनपुर का महामाया देवी मंदिर: विश्व के 51 सिद्ध शक्तिपीठों में शामिल, आस्था का प्रमुख केंद्र

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अतुल्य भारत चेतना
मोहनिश कश्यप

रतनपुर/बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर से लगभग 26 किलोमीटर दूर धार्मिक नगरी रतनपुर में स्थित मां महामाया देवी मंदिर देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर विश्व के 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, जहां माता सती का दाहिना स्कंध गिरा था। मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता इसे विशेष बनाती है, और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां मां महामाया के दर्शन के लिए आते हैं।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

महामाया मंदिर का निर्माण कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। जनश्रुतियों के अनुसार, सन 1045 के आसपास तुम्मान खोल के राजा रत्नदेव प्रथम शिकार के लिए निकले थे और शिकार करते-करते मणिपुर (वर्तमान रतनपुर) पहुंच गए। रात होने पर उन्हें वन्यजीवों के भय से एक वट वृक्ष पर विश्राम करना पड़ा। रात में अचानक उनकी आंख खुली तो उन्होंने वट वृक्ष के नीचे तेज प्रकाश और मां महामाया की सभा को देखा। इस दैवीय अनुभव से अभिभूत राजा ने रतनपुर को अपनी नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया और सन 1050 के आसपास इसे अपनी राजधानी घोषित किया।

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मंदिर की स्थापना और बलि प्रथा

जनश्रुतियों के अनुसार, राजा रत्नदेव ने मां महामाया के लिए एक नया मंदिर बनवाया और उनसे वहां विराजमान होने की प्रार्थना की। एक रात स्वप्न में मां ने राजा से कहा कि वह नए मंदिर में आएंगी, लेकिन इसके लिए 1008 बलियों का प्रबंध करना होगा। राजा ने इसे सहर्ष स्वीकार किया, और इस प्रकार मां महामाया की प्रतिमा नए मंदिर में स्थापित की गई। पहले मंदिर में नरबलि की प्रथा थी, जिसे बाद में राजा बहारसाय ने बंद करवाया और पशु बलि शुरू की गई। वर्तमान में यह प्रथा भी समाप्त हो चुकी है।

मंदिर की संरचना और विशेषताएं

महामाया मंदिर मंडप नगारा शैली में निर्मित है और 16 स्तंभों पर आधारित है। मंदिर के गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े 3 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। मान्यता है कि माता की प्रतिमा के पीछे माता सरस्वती की प्रतिमा भी थी, जो अब विलुप्त हो चुकी है। मंदिर परिसर में एक प्राचीन वट वृक्ष और एक कुंड भी मौजूद है, जो इसकी ऐतिहासिकता को और बढ़ाता है।

शक्तिपीठ की कथा

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटक रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सती के शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जो आज सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में पूजे जाते हैं। रतनपुर के महामाया मंदिर में माता सती का दाहिना स्कंध गिरा था, जिसके कारण यह स्थल 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र

महामाया मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां मां महामाया के दर्शन और पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

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रतनपुर का महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल रत्न है। इसकी स्थापना से लेकर आज तक यह मंदिर आस्था, श्रद्धा, और पर्यावरण की रक्षा का प्रतीक बना हुआ है। स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन द्वारा इसे और अधिक विकसित करने की योजनाएं बनाई जा रही हैं, ताकि श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सकें।

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