अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप
रतनपुर। लगभग वर्ष भर मौन रहने वाला यह पक्षी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही टक,टक की आवाज शुरू कर देता है और पूरा वन इसकी आवाज से गूंजने लगता है नेचर क्लब के संयोजक बलराम पांडे ने बताया कि आर्डर फिसी फारमि सी फैमिली केपी टोनिडी का यह सदस्य छोटा बसंत भारी चोंच वाला घास के रंग का होता है इसकी छाती और माथा लाल पीला और निचले हिस्से पर हरि धारी पड़ी होती है इसकी पूछ छोटी होती है उड़ते समय इसका प्रतिबिंब तिकोना बनता है जहां कहीं भी पीपल या बरगद के पेड़ हो चाहे वह दूर जंगल सुनसान इलाके में ही क्यों न हो यह आसानी से रह लेता है इन्हीं पेड़ों पर यह पक्षी अक्सर मैना, बुलबुल, धन चिड़ी, हरि यल, जैसे फल खाने वाले चिड़ियों के साथ फलों की दावत उड़ाते रहता है।

कभी-कभी यह कीड़े मकोड़े पर भी झपट्टा मार कर उसे पकड़ लेता है यह हमेशा पेड़ों पर रहने वाली चिड़िया है और शायद ही अपनी जिंदगी में कभी जमीन पर उतरती हो इसकी बोली थोड़े-थोड़े अंतर में टक,टक जैसी होती है ऐसा लगता है जैसे कोई धातु पर हथोड़ा मार रहा हो बोलते समय यह पक्षी अपना सर इधर-उधर हिलाता डूलाता रहता है नर व मादा समान सुंदर होते हैं मादा अपने अंडे किसी नरम लकड़ी वाली डाल पर चिड़ियों द्वारा बनाए गए कोटर पर देती है। यह एक बार में आमतौर पर तीन अंडे देती है यह सफेद रंग के होते हैं गांव के आसपास बहुत अधिक संख्या में दिखाई देने वाला यह पक्षी अब कम ही दिखाई देता है इनकी संख्या कंक्रीट के जंगलों के कारण कम होती जा रही है फिर भी दूर कहीं टक, टक एक या दो सेकंड में रुक-रुक कर होने वाली आवाज सुनकर बसंत के आगमन और उनकी उपस्थिति का एहसास हो जाता है नेचर क्लब के संयोजक बलराम पांडे अध्यक्ष,ओमप्रकाश दुबे, सचिव विकल जायसवाल, कोषाध्यक्ष होरी लाल गुप्ता, उस्मान कुरैशी, शरद अग्रवाल, रमेश गुप्ता, राजेंद्र मिश्रा, अनिल अग्रवाल, गेंद राम कौशिक ने दिन-ब-दिन कम होती जा रही इस पक्षी की संख्या पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए इसे प्राकृतिक असुंतलन व पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई का परिणाम बताया।