अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
झिंझाना/शामली। किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह की जयंती पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। सोमवार को पीएनबी के निकट किसान मसीहा स्वर्गीय चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए मुख्य अतिथि अनिल चौहान ने चौधरी साहब के जीवन से प्रेरणा लेकर पर उनके पदचिन्हों पर चलने का आह्वान किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे किसान मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष बंटी चौधरी ने चौधरी चरण सिंह की बात को याद करते हुए बताया कि राष्ट्र की तरक्की का रास्ता खेत खलियानों से होकर जाता है। उन्होंने चौधरी चरण सिंह के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि उनका जन्म 23 दिसम्बर 1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव, तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद, कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में एक जाट परिवार मे हुआ था। उनके पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। यहीं के परिवेश में चौधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने ईमानदारी, साफगोई और कर्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। गाँधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया। आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्टूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया।

अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी। 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। जिसमे बुलन्दशहर में श्री होशियार सिंह सिरोही ने उनको बहुत सहयोग किया था। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गरजपाल शर्मा ताना ने की। इस मौके पर मोनू से तोमर, नरेश चेयरमैन, विजेंद्र कश्यप, रामवीर प्रधान, आदेश प्रधान पुरमाफी, रेनू सरोहा, डॉक्टर भूपेंद्र सिंह, भगत सिंह, भोपाल देशवाल तथा विनोद अग्रवाल सहित सैकड़ो कार्यकर्ता उपस्थित रहे।