
अतुल्य भारत चेतना
वीरेंद्र यादव
राजा सतवीर बहादुर सिंह ने किया छेरा पहरा दो दिवसीय रथ उत्सव का आयोजन रियासत काल से चला आ रहा है। पुराने समय मे रथ भ्रमण पर निकल जाने के कारण दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को रथ उत्सव के दिन रथयात्रा में जगन्नाथ प्रभु जी के दर्शन नही हो पाते थे इसीलिए श्रद्धालुओं को महाप्रभु का दर्शन प्राप्त हो सके करके रायगढ़ रियासत के तत्कालीन राजा ने दो दिवसीय रथ उत्सव का आयोजन प्रारंभ किया
संस्कारधानी राजा चक्रधर सिंह की नगरी रायगढ़ शहर में प्राचीन परंपरा के अनुसार राजपरिवार द्वारा इस वर्ष भी रियासत कालीन दो दिवसीय भव्य रथयात्रा उत्सव मनाया गया ।छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में पारंपरिक रूप से ये कथा प्रचलित है कि महाराजा भूपदेव सिंह जी को एक ही पुत्र रानी राम कुंवर देवी से प्राप्त था उन्हें द्वितीय पुत्र की लालसा थी क्योंकि राजकीय परंपरा के अनुसार जिस बड़े पुत्र को युवराज बनाया जाता है उसे अपने पिता या राजा को मुखाग्नि देने का अधिकार नहीं दिया होता है इसको लेकर महाराज अकसर चिंतित रहते थे कि एक दिन राज्य रायगढ़ में एक साधु आये जिन्होंने महाराज को बताया कि उन्हें द्वितीय पुत्र रत्न की प्राप्ति पुरी महाप्रभु जगन्नाथ के पूजन अर्चन एवं आशीर्वाद से प्राप्त हो सकती हैं तत्पश्चात महाराज अपनी रानियों समेत पूरी धाम को रवाना हो गए जैसे ही वह पूरी पहुंचे उन्हें तो वहां एक और साधु के मिले जो महाराज को देखकर गुस्से में बोले कि आपको तो अपने राज्य में होना चाहिए फिर कारण जान आशीर्वाद दिया ..पर आश्चर्यचकित महाराज साधु की बात सुनकर तुरंत ही रायगढ़ वापस लौटने का फैसला किया और जगन्नाथ महाप्रभु को प्रणाम कर लौट आए तो उन्हें पता चला कि उनके राज्य में प्लेग महामारी ने फैल चुकी है तुरंत साधु की बात समझ आयी और उन्होंने राज्य में प्लेग को खत्म करने यथासंभव प्रयास किया शीघ्र ही रायगढ़ की स्थिति सामान्य हो गयी कुछ समय पश्चात महाराज भूपदेव सिंह को द्वितीय पुत्र रत्न की प्राप्ति गणेश चतुर्थी के दिन हुई जिसका नाम उन्होंने जगन्नाथ रखा फिर एक अन्य पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने बलभद्र रखा तीसरी कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने सुभद्रा रखा इस प्रकार महाराज के घर में जगन्नाथ महाप्रभु का पूरा परिवार ही आ गया और भूपदेव सिंह के जेष्ठ पुत्र नटवर सिंह द्वितीय पुत्र चक्रधर सिंह( जगन्नाथ) तृतीय पुत्र बलभद्र सिंह एवं एक कन्या सुभद्रा सिंह से भरा पूरा परिवार महाप्रभु की कृपा से प्राप्त हुआ और फिर उन्होंने मोती महल का निर्माण प्रारंभ कराया उसके साथ ही जगन्नाथ मंदिर का निर्माण भी प्रारंभ कराया गया इस प्रकार मंदिर निर्माण के बाद रायगढ़ में रथ मेले का आयोजन किया जाने लगा धीरे धीरे यह पर्व जिसे महल के सामने स्थित खाली मैदान में एक विशाल मेले के रूप में आयोजित किया जाने लगा था और राजा महल के सामने स्थित जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती थी जिस परंपरा को आज तक रायगढ़ राजपरिवार निभा रहा है इस प्रकार हमारे रायगढ़ में रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ रायगढ़ राज परिवार का इतिहास अत्यंत ही रोचक और गौरवशाली रहा है अब इतिहास के अनुसार राजा भूपदेव सिंह का जन्म 1867 में हुआ था और वे रायगढ़ महाराज के रूप में 17 जून 1890 को विराजमान हुए उनके पश्चात उनके प्रथम पुत्र नटवर सिंह जिनका जन्म 1891 को हुआ था और वे 22 मार्च 1917 को राज्यारूढ़ हुए उसके बाद प्रसिद्ध महाराजा चक्रधर सिंह का जन्म 19 अगस्त 1905 को हुआ था और 23 अगस्त 1924 को रायगढ़ की गद्दी पर बैठे जो कि भारत के स्वतंत्रा के पूर्व तक साहित्य, कला, संगीत के भारतवर्ष में ख्याति प्राप्त राजा रहे उनके बाद राजा ललित सिंह को रायगढ़ का राजा बने जिनके समय भारत को आजादी मिली और उन्होंने ही भारत संघ के विलेय पत्र में साईन किया बाद में राज परिवार ने जगन्नाथ मंदिर को उत्कल सेवा समिति को दे दिया रथयात्रा जो अनवरत जारी थी तो अब उसे तब से आज तक इसी ट्रस्ट द्वारा हर वर्ष निरंतर किया जाता है।