अतुल्य भारत चेतना
दिनेश सिंह तरकर
मथुरा। मथुरा रिफाइनरी, जो इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) के स्वामित्व में है, उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित एक प्रमुख तेल शोधन इकाई है। यह रिफाइनरी अपनी पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के लिए जानी जाती है और इसने 1996 में पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली के लिए आईएसओ-14001 प्रमाणन प्राप्त किया था। हालांकि, हाल के दिनों में रिफाइनरी टाउनशिप में स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। क्षेत्रवासियों का आरोप है कि इस प्लांट से निकलने वाला दूषित पानी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है और बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ा रहा है।
समस्या का विवरण
मथुरा रिफाइनरी टाउनशिप का एसटीपी प्लांट घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल को शुद्ध करने के लिए स्थापित किया गया था, ताकि इसे सुरक्षित रूप से जल निकायों में छोड़ा जा सके या पुन: उपयोग किया जा सके। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि इस प्लांट से निकलने वाला गंदा पानी टाउनशिप के बाहर खेतों में बहाया जा रहा है। इससे न केवल मिट्टी और जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं, बल्कि क्षेत्र में मच्छरों और अन्य कीटों के प्रजनन के कारण डेंगू, मलेरिया और अन्य जलजनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है।

आरोप है कि रिफाइनरी प्रमुख मुकुल अग्रवाल इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि एसटीपी प्लांट में कई तरह की तकनीकी और प्रबंधकीय लापरवाहियां बरती जा रही हैं, जिसके कारण यह सुविधा अपनी मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल हो रही है। इसके अलावा, यह भी विडंबना है कि पर्यावरण दिवस पर रिफाइनरी प्रमुख फोटो खिंचवाने और पर्यावरण संरक्षण की बातें करने में सबसे आगे रहते हैं, लेकिन वास्तविक समस्याओं पर कार्रवाई करने में पीछे हैं।
पेट्रोलियम वर्कर्स यूनियन की प्रतिक्रिया
पेट्रोलियम वर्कर्स यूनियन के कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के पदाधिकारी दिलीप दुबे ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, “एसटीपी प्लांट की लापरवाही के कारण न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि क्षेत्र में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। रिफाइनरी प्रबंधन को इस ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए और प्लांट की कार्यप्रणाली को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो बीमारियों का प्रकोप और बढ़ सकता है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
एसटीपी प्लांट से निकलने वाला दूषित पानी स्थानीय खेतों में बहाया जा रहा है, जिसके कारण:
- मिट्टी और जल प्रदूषण: अनुपचारित सीवेज से मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है, और भूजल में हानिकारक रसायनों और जीवाणुओं का मिश्रण हो रहा है।
- बीमारियों का खतरा: दूषित पानी के कारण जलजनित और कीटजनित रोगों, जैसे डेंगू, मलेरिया, और त्वचा र रोगों का खतरा बढ़ गया है।
- कृषि पर प्रभाव: खेतों में दूषित पानी के उपयोग से फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।
- सामाजिक असंतोष: स्थानीय निवासियों में रिफाइनरी प्रबंधन के प्रति गुस्सा और असंतोष बढ़ रहा है, क्योंकि उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
अपेक्षित कार्रवाई
- तकनीकी सुधार: एसटीपी प्लांट की कार्यप्रणाली की जांच कर लापरवाहियों को दूर किया जाए। नियमित रखरखाव और उन्नत तकनीकों का उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
- प्रदूषण नियंत्रण: दूषित पानी को खेतों में बहाने के बजाय, इसे पूरी तरह शुद्ध करके सुरक्षित रूप से निपटान या पुन: उपयोग किया जाए।
- स्वास्थ्य जागरूकता और सहायता: क्षेत्र में बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन और जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
- प्रबंधकीय जवाबदेही: रिफाइनरी प्रबंधन, विशेष रूप से प्रमुख मुकुल अग्रवाल, को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
- निगरानी और पारदर्शिता: एसटीपी प्लांट की कार्यप्रणाली की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित की जाए, जो नियमित रूप से प्रगति की समीक्षा करे और जनता को सूचित करे।
मथुरा रिफाइनरी का एसटीपी प्लांट, जो पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था, वर्तमान में क्षेत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है। रिफाइनरी प्रबंधन की उदासीनता और लापरवाही के कारण न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि स्थानीय निवासियों का जीवन भी खतरे में है। यह अत्यंत आवश्यक है कि रिफाइनरी प्रमुख मुकुल अग्रवाल और प्रबंधन इस मामले को गंभीरता से लें और तत्काल सुधारात्मक कदम उठाएं। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह समस्या और गंभीर रूप ले सकती है, जिसका प्रभाव मथुरा और आसपास के क्षेत्रों पर लंबे समय तक रहेगा।