अतुल्य भारत चेतना
जल
मैं जल हूं
जलता हूं जगह जगह
इसीलिए जन मुझे
जल कहते हैं
कहीं जलता हूं मैं
अग्नि की ताप से
तो कहीं अपने ही द्वारा
निर्मित भाप से
कहीं जलता हूं
विद्युत की चिंगारियों से
तो कहीं लोगों के
विभिन्न बिमारियों से
जलता हूं मैं कहीं
मल-मूत्र और पाप से
तो कहीं लोगों के
दुष्कर्म और पश्चाताप से
मैं जलता हूं हर जगह
जलकर जहां में जनों का
जीवन दीप जलाता हूं
और घर किया अंधकार को
अपनी अमिट रोशनी से
भगाता हूं
मैं जल हूं
जनों का पत पानी
जहां की जिंदगानी
मैं जल हूं
जलता हूं जगह जगह
इसीलिए जन मुझे
जल कहते हैं।
प्रमोद कश्यप “प्रसून”
रतनपुर